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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श.८ उ.१ म. ४ सूक्ष्मपृथ्वीकायस्वरूपनिरूपणम् . ६१ न्द्रियप्रयोगपरिणतास्ते वैक्रियतैजसकार्मणशरीरपयोगपरिणताः । एवं पर्याप्तका अपि । एवं यावत अधःसप्तमी १ । ये अपर्याप्तकसंमूर्छिमजलचरयावत् परिणतास्ते औदारिकतैजसकार्मणशरीरयावत्-परिणताः। एवं पर्याप्तका अपि । गर्भव्युत्क्रान्तिका अपर्याप्तका एवमेव, पर्याप्तकाः खलु एवमेव, नवरं शरीर काणिचत्वारि यथा वादरवायुकायिकानां पर्याप्तकानाम् । एवं यथा जलचरेषु चत्वारः आलापकाः भणिताः । एवं चतुष्पदोरःपरिसर्प-भुजपरिसर्पनारक पंचेन्द्रियप्रयोग परिणत हैं वे वैक्रिय, तैजस एवं कार्मण शरीर के प्रयोगसे परिणत हैं (एवं पज्जत्तया वि) इसी प्रकारसे पर्याप्त नारक भी जानना चाहिये । (एवं जाव अहे सत्तमा ) इसी प्रकारसे यावत् अधः सप्तम नरकतक जानना चाहिये । (जे अपज्जत्तगसंमुच्छिम जलयर जाव परिणया ते ओगलिय तेया कम्मासरीर. जाव परिणया एवं पज्जत्तगा वि) जो पुद्गल अपर्याप्त संमूछिम जलचर प्रयोगपरिणत हैं, वे औदारिक, तैजस और कार्मण शरीरप्रयोग परिणत हैं। इसी तरहसे पर्याप्तक संमृच्छिमजलचर भी जानना चाहिये । (गन्भवतिया अपज्जत्तगा एवं चेव) गर्भज अपर्याप्तभी इसी प्रकारसे जानना चाहिये । (पज्जत्तयाणं एव चेव) गर्भज पर्याप्तक भी इसी तरहसे जानना चाहिये । (नवरं सरोरगाणी चत्तारी जहा वायरवाउक्काइयाणं पज्जत्तगा ण) परन्तु यहांपर विशेषता यही है कि पर्याप्तक चादर वायुकायिकोंकी तरह इनके चार शरीर होते हैं। પુદગલ છે, તે વૈક્રિય, તેજસ અને કાર્મણ શરીરના પ્રયોગથી પરિણત થયેલા હોય છે. ( एवं पज्जत्तया वि )मे प्रमाणे परत ना२४ विष ५५ सभा (एवं जाव अहे सत्तमा ) से प्रमाण नये सातभा नना ना२३ सुधीनु ४थन सम. जे अपज्जत्तगसंमुच्छिमजलयर जाव परिणया- ते ओरालियतेयाकम्मा सरीर० जाव परिणया एवं पज्जनंगा वि) रे पुस २मति स भूमि જલચર પ્રોગપરિણત છે, તેઓ દારિક, સૌજસ અને કામણ શરીરના પ્રવેગથી પરિણત હોય છે એ જ પ્રમાણે પ્રર્યાપ્તક સમૃØિમ જ લચર વિષે પણ સમજવું. (गम्भवक तिया अपज्जत्तगा एवं चेव) अपर्याप्त विषे ५४ मे ४थन सभा पज्जत्तयाणं एवं चेव) म पनि वि पY मे २४ प्रमाणे समन (णवर सरीरगाणि चत्तारि जहा धायरवाउक्काइयाणं पजत्तगाणं) ५५ डीमेरी વિશેષતા સમજર્ની કે પર્યાપ્તક બાદર વાયુકાયિકની જેમ તેમના ચાર પ્રકારના શરીર હોય છે
SR No.009316
Book TitleBhagwati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages811
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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