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________________ भगवती सूत्रे ६० तैजस कार्मणप्रयोगपरिणताः । एव यावत् चतुरिन्द्रियाः पर्याप्ताः, नवरं ये पर्यातकवाद र वायुकाथिकै केन्द्रिय प्रयोगपरिणतास्ते औदारिकवैक्रियतैजसकार्मणशरीर - यावत् - परिणताः, शेप तदेव । ये अपर्याप्तकरत्नप्रभा पृथिवीने रयिकपञ्चेऔर कार्मण इनतीन शरीरोंके प्रयोगोंसे परिणामको प्राप्त हुए होते हैं । (जे पज्जत्ता सुहुम० जाव परिणया ते ओरालियतेयाकम्मगसरीरप्पओगपरिणया एवं जाव चउरिंदिया पज्जत्ता) तथा जो पुद्गल पर्याप्त सूक्ष्मपृथिवीकाय एकेन्द्रियप्रयोगपरिणत हैं ये औदारिक, तैजस और कार्मण इनतीन शरीरोंके प्रयोगोंसे परिणत हुए होते हैं । इसी तरहसे यावत् चतुरिन्द्रिय पर्याप्तक जीवोंके विषय में भी जानना चाहिये । ( णवरं - जे पज्जत्तवायरचाउकाइयएगिदियपओगपरिणया ते ओरालियवेउब्विय तेयाकम्मसरीर जाव परिणया सेसं तं चैव ) परन्तु यहां पर जो विशेषता है वह यह है कि जो पुद्गल पर्याप्त चादर वायुकायिक एकेन्द्रियप्रयोगपरिणत हैं वे औदारिक, वैक्रिय, तैजम और कार्मण इन ४ शरीरोंके प्रयोगों से परिणत हुए होते हैं । बाकीका और सबकथन पहिले जैसा ही जानना चाहिये । (जे अपज्जन्तरयणप्पा पुढवीनेरइय पंचिदियपओग परिणया ते वेउब्विय तेयाकम्मसरीरप्पओगपरिणया) जो पुद्गल अपर्याप्तक रत्नमभापृथिवी जात्र शरीराना प्रयोगश्री परिशुमन पाभेला होय हे (जे पज्जत्ता सुहुम. परिणया ते ओरालिय तेयाकम्मण सरीरप्पओगपरिणया एवं जात्र चउरिंदिया पज्जत्ता) तथा प्रर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीय मेहेन्द्रिय प्रयोगपरित युद्धसो होय छे, તે ઔદારિક, વૈજસ અને કાણુ એ ત્રણ શરીરાના પ્રયાગથી પરિણમન પામેલાં होय छे मे ४ प्रमाणे तुरिन्द्रिय पर्याप्त सुधीना छ। विषे समन्वु णवरं - जे पज्जत्वायरचाउकाइयए गिंदियपओगपरिणया ते ओरालियवेउन्वियतेयाकम्मसरीर जात्र परिणया सेसं त चेच) पशु सहीं शोटली ४ विशेषता સમજવી કે જે પુદ્ગલ પર્યાપ્તક ખાદર વાયુકાચિક અકેન્દ્રિય પ્રયાગપરિણત હાય છે. તે ઔદારિક, વૈક્રિય, તેજસ અને કાણુ, એ ચાર શરીરાના પ્રયાગથી પરિણત થયેલા होय हे जाडीनु समस्त स्थन भागण उद्या प्रमागुन समन्न्वु. ( जे अपज्जत स्यणप्पभा पुत्रीनेरडयन चिंदियपओगपरिणया ते वेउन्वियतेयाकम्म सरीरपओगपरिणया ) ने अपर्याप्त रत्नमला पृथ्वीनार४ यथेन्द्रिय प्रयोगपरियुत -
SR No.009316
Book TitleBhagwati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages811
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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