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________________ म. टीका ग८ उ. ६ मु०५ क्रियास्वरूपनिरूपणम् ७३३ यदात्वति 6 तापयति तदा चतुष्क्रियः, आद्यक्रियात्रयस्य तत्रावश्यंभावात् पातयति तदा पञ्चक्रियः, आद्यक्रियाचतुष्कस्य तत्रावश्यंभात्रात्, तदुक्तम्'जस्स पारियावणिया किरिया कज्जड तस्स काइया नियमा कज्जर' इत्यादि, यस्य पारितापनिकी क्रिया क्रियते, तस्य कायिकी नियमात् क्रियते, इति, तदभिप्रायेणाह - 'सिय चउकिरिए सिय पंचकरिए 'त्ति, तथा 'सिय अकिरिए' स्यात् कदाचित् वीतरागावस्थायाम् अक्रियो जीवो भवति इत्यर्थः, वीतरागावस्थायां हि वीतरागत्वादेव न सन्ति अधिकृतक्रिया इत्याशय, गौतमः पृच्छति नेरइए णं भंते ! ओरालियमरीराओ कइ किरिए ? हे भदन्त ! नैरयिकः - खलु औदारिकशरीरात् परकीयौदारिकशरीरमाश्रित्य कतिक्रियः कियत्प्रकारकक्रियवान् - चाला होता है ऐसा कहा है- जब यह अवीतराग जीव अन्य जीवोंको परितापित करता है-तब वह चार क्रियाओंवाला होता है क्यों कि ऐमी अवस्था में आदिकी तीन क्रियाएँ उस में अवश्य होती हैं । तथा जब ग्रह जीव अन्य जीवोंको मारता है तब वह पांच क्रियाओंवाला होता है- क्योंकि इस स्थिति से उसमें आदिकी चार क्रियाओंका अवश्यही सद्भाव रहता है सोही कहा है- जस्स परियावणिया किरिया कज्जs, तस्स काइया नियमा कज्जइ' इत्यादि - इली अभिप्रायको लेकर 'यि चक्किरिए, मिय पंचकरिए, ति ' ऐसा कहा गया है । तथा ' सिय अकिरिए ' ऐमा जो कहा है वह वीतराग अवस्थाको लेकर कहा है- क्योंकि वीतराग अवस्था में जीव इन क्रियाओंवाला नहीं होता है । अव गौतम स्वामी प्रभुसे पूछते हैं- ( नेरइएणं भंते ! ओरालियासरीराओ कह किरिए ) हे भदन्त | नारक परकीय औदारिक शरीरको आश्रित करके कितने प्रकारकी क्रियाओंवाला કહી શકાય છે જ્યારે તે અવીતરાગ જીવ અન્ય જીવાને પરિતાપિત કરે છે, ત્યારે તે ચાર ક્રિયાઓવાળા કહેવાય છે. તથા ત્યારે તે જીવ અન્ય જીવાને મારતા હોય છે, ત્યારે તે પાંચ ક્રિયાવાળા હોય છે, કારણકે એવી પરિસ્થિતિમાં તે જીવમા પડેલી ચાર ક્રિયાઓને પણ અવશ્ય સદ્ભાવ રહે છે તેથી જ કહ્યુ છે કે जस्स पारियावणिया किरिया कज्जइ, तस्स काइया नियमा कज्जइ प्रयाहि मेन अरा सूत्रारे आ પ્રમાણે કહ્યુ છે- सिय चउक्किरिए, सिय पंचकिरिए त्ति ' तथा 'सिय अकिरिए ' કયારેક તે ક્રિયા રહિત હોય છે,’ આવુ જે કહેવામાં આવ્યું છે તે વીતરાગ અવસ્થાને અનુલક્ષીને કહ્યું છે, કારણકે વીતરા અવસ્થામા જીવ આ ક્રિયાવાળેા હોતા નથી. हवे गौतम स्वामी नार४ विषे प्रश्न पूछे छे - 'नेरइएणं भंते ! ओरालियसरी राओ कइ किरिए ? डे अहन्त ! नार४ व परडीय भौहारि शरीरने भाश्रित गरीने डेंटली , ८
SR No.009316
Book TitleBhagwati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages811
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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