SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 708
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवती सूत्रे ७१० 1 हां सिया' सा च निर्ग्रन्थी संप्रस्थिता स्वस्थानात् प्रचलिता किन्तु असंप्राप्ताः प्रवर्तिनीसमीपं नोपगता मार्गे स्थिता एवं तावत् प्रवर्तिनी साध्वीच अमुखा मूका वातादिदोपवशात् वचनरहिता स्यात्, 'साणं भंते ! किं आराहिया, विराहिया ? हे भदन्त ! सा आलोचनार्थं गन्तुं प्रवृत्ताः निर्मन्थी खलु किम् आराधिका ? विराधका वा भवेत् ? भगवानाह - 'गोयमा ! आराहिया, नो विराहिया' हे गौतम ! सा निर्ग्रथी आराधिका स्यात् नो विराधिका स्यात्, 'सा य संपट्टिया जहा निग्गंथस्स तिन्निगमा भणिया, एवं निग्ग थीए वि तिनि आलानगा भाणियन्त्रा, जाव आराडिया नो विराहिया सा च निर्ग्रन्थी साध्वी संप्रस्थिता यथानिग्रन्थस्य त्रयोगमा आलापका भणिताः एवंतथैव निनन्याः साध्या अपि त्रयः आलापका भणितव्याः, तथाहि - वसा संप्रस्थिता पवत्तिणीय अमुहा सिया' वह उस अकृत्यस्थान से चल देती हैपरन्तु यह वहाँ पहुँच नहीं पानी है रास्ते में ही रहती है कि इतने में वह प्रवर्तिनी वातादिदोषवश अमुख - मूक हो जाती है। तो ऐसी हालत में ' साणं भते ! कि आराहिया विराहिया ' हे भदन्त ! वहसाध्वी जो कि आलोचना के लिये चली जा रही है क्या आरोधिका है या विराधिका है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं- ' गोयमा ' हे गौतम ! 'आराहिया नो विराहिया' वह निर्ग्रन्धी-साध्वी आराधिका है किन्तु विराधिका नहीं है । ' सायसंपट्टिया जहा निग्गंथस्स तिन्नि गमा भणिया एवं निग्गंथीए वि तिम्नि आलावगा भाणियव्वा, जाव आराहिया, नो विराहिया ' जिस प्रकार से संप्रस्थित हुए निर्ग्रन्थके असंमाप्त विषयक तीन आलापक कहे गये हैं, उसी प्रकारसे संप्रस्थित हुई साध्वी के असंपता पवत्तिणीय अमुहा सिया' ते त्यांथी यासी नीडले छे, यासु ते त्यां પહેાંચે તે પહેલા તે તે પ્રવર્તિની વાતાદિ દોષને લીધે મૂક બની જાય છે. તેથી તે સાધ્વીજીને પ્રાયશ્ચિત્ત આપીશકતા નથી. તે એવી પરિસ્થિતિમાં साणं भंते! कि आराहिया, विराहिया ? ' आयोयना न पुरी शम्नार ते साध्वीने संयमनी साराधि उही साय विराधि उडेवाय ? तेना उत्तर भापता महावीर प्रभु ४ छे- 'गोयमा' हे गौतम! ' आराहिया, नो विहारिया ' ते साध्वीने संयमनी खाराधिा ? उही शराय, विराधिम डेवाय नही. ' सा य संपट्टिया जहा निग्गंथस्स तिनि गमा भणिया एवं निम्गंथीए वि तिनि आलावगा भाणियन्त्रा, जाव आराहिया, नो विराहिया' सोयना माहि કરવા માટે સ્થવિર પાસે જવાને માટે ઉપડેલા નિ થના અસ’પ્રાપ્ત સ્થિતિ વિષયક ત્રણ આલાપક કરવામાં આવ્યા છે, એજ પ્રમાણે | " つ
SR No.009316
Book TitleBhagwati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages811
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy