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________________ ६७४ ... . ....भगवतीमत्रे अनुगवेपवितव्याः स्युः, शेष तदेव यावत् परिष्ठापयितव्यौ स्याताम्, एवं यावत् दशभिः पिण्डैः उपनिमन्त्रयेत्, न वरम्-एकम् आयुष्मन् ! आत्मना भुझ्व, नव स्थविराणां देहि शेषं तदेव यावत् परिष्ठापयितव्याः स्युः, निग्रन्थं च खलु गाथापतिकुल यावत् कश्चित् द्वाभ्यां प्रतिग्रहाभ्याम उपनिमन्त्रयेत्-एकम् आयुष्मन् ! आत्मना परिभुक्ष्व, एक स्थविराणां देहि, स च तौ प्रतिगृह्णीयात् तथैव यावत् तं नो आत्मना परिभुजीत, खाना वाकी के ये दो पिण्ड स्थविरों को देना इसके बाद (से य ते पडिग्गाहेजा थेरा य से अणुगवेसेयव्वा ) वह उन पिण्डों को लेकर उन स्थविरों की गवेषणा करने लगता है (सेसं त चेव जाव परिहावेयवासिया) इसके बाद का अवशिष्ट कथन पूर्व की तरह कह लेना चाहिये यावत् वह उन दो पिण्डों को परिष्ठापित कर देता है । ( एवं जाव दसहिं पिंडेहिं उवनिसंतेजा) इसी तरह से 'यावत दश पिण्डों को ग्रहण करने के लिये गृहस्थ उपनिमंत्रण करता है। इस विषय में भी समझना चाहिये। (नवरं एगं आउलो! अप्पणा सुजाहि, नव थेराणं दलयाहि-सेसं तं चेव जाव परिहावेयव्वेलिया) परंतु जब वह गृहस्थ इस प्रकार से कहे कि हे आयुप्मन् ! एकपिण्ड तुम खाना बाकी के नौ पिण्ड स्थविरों को देना-इसके आगे का अपशिष्ट कथन यावत् स्थण्डिल में परिष्ठापित कर देवे यहां तक जानना चाहिये (निग्गंधं च णं गाहावड० जाव दोहि पडिग्गोहिं 'उनिमंतेज्जा एगं आउसो अप्पणा पडिभु जाहि एगं थेराणं दलयाहि) माना मे पिंड स्थविशने पीने त्या२६ (सेय ते पडिग्गहेज्जा थेराय से अणुगवे सेयव्या ) त नियंत पिडा अड रीन. ते स्थविशनी शाध ४२वी २४. (सेसं तं चेव जाव परिहावेयच्या सिया) त्या२ मातुं ते मे पिडाने भूमिमा ५२०४ापित ४ नाणे छे', 'यां सुधीनु समस्त यन मही अडए। ४२j (एवं जाव दसहि पिंडेहिं उवनिमंतेज्जा) से प्रमाणे ४१ पर्यन्तना पिंडी अहए। ४२वाना पनिमा विषे पण भाj ( नवरं एगं आउसो ! अप्पणा भुजाहि, नव थेराणं दलयाहि - रोसं तं चेव जात्र परिहावेयवे सिया) मी विशषता मेहदी જ સમજવાની છે કે “આયુમન, અક પિડ આપ ખાજે, બાકીના નવ પિંડે સ્થવિરોને આપશે ‘, ત્યાર બાદનું “ભૂમિમા નવ પિડેને પાઠવી દેવા” પર્યતનું કથન આગળ भु र समर. (निग्गंथं च णं गाहावइ०जाव दोहि पडिग्गहेहि उवनिमंतेजा एग आउसो ! अप्पणा पडिभुंजाहि एगं थेराणं दलयाहि ) ४ मे निय -
SR No.009316
Book TitleBhagwati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages811
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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