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________________ पमेयचन्द्रिका टी. श.८ उ.५ स.२. स्थूलपाणातिपातप्रत्याख्याननिरूपणम् ६२९, जानाति वचसा कायेन १५, 'अहंवा न करेइ, करत णाणुजाणइ वयसा कायसा १६, अथवा विविध माणातिपात विविधन करणेन प्रतिक्रामन् स्वयं न करोति, कुर्वन्त' वा नानुजानाति वचसा कायेन १६, 'अहवा न कारवेड, करेत णाणुजाणइ, मणमा वयसा १७, अथवा द्विविध प्राणातिपात द्विविधन करणेन प्रतिक्रामन अन्यद्वारा न कारयति, कुर्वन्तं वा नानुजानाति मनसा वचसा १७, अहवा न कारवेइ करेंत णाणुजाणइ मणसा कायसा १८, अथवा विविध प्राणातिपात द्विविधेन करणेन प्रतेक्रामन् अन्यद्वारा न कारयति, कुर्वन्तं वा नानुजानाति मनसा कायेन १८, 'अहवा न कारवेइ करे त.. णाणुजाणइ वयसा कायसा १९, अथवा विविध प्राणातिपात द्विविधेन करणेन अनुमोदना करता है। अथवा न करेइ, करेतं णाणुजाणइ वयसा कायसा १६' अथवा द्विविध प्राणातिपात का द्विविधसे प्रतिक्रमण करता हुआ वह उसे बचन और कायसे न करता है और न करते हुए की वह उन दोनों द्वारा अनुमोदना करता है। अहवा-न कारवेइ, करेंतं णाणुजाणइ मणसा क्यसा १७ अथवा द्विविध प्राणातिपात का विविधसे प्रतिक्रमण करता हुआ वह मनसे और वचनसे उसे न करता है और न करते हुए की उन दोनों द्वारा अनुमोदना करता है । "अह्वा न कार वेइ, करेतं णाणुजाणह मणसा कायसा १८' अथवा द्विविध प्राणातिपातका द्विविधसे अतिक्रमण करता हुआ वह उसे मनसे अन्यके द्वारा न कराता है, और न करने वालेकी वह अनुमोदना करता है, इसी तरहसे वह उसे कायसे न कराता है, • और न करने वाले की वह उससे अनुमोदना करता है। 'अहवा न कारवेइ, करेंतं पाणुजाणइ, वयसा कायसा १९' अथवा विविध ४२त। नयी.. 'अहवा न करेइ करेंत णाणुजाणइ वयसा कायसा' (6) मा विविध પ્રાણાતિપાતનુ દ્વિવિઘે પ્રતિક્રમણ કરે તે શ્રાવક વચનથી અને કાયાથી પિતે પ્રાણાતિપાત ४२ नथी, भने ४२नारनी क्यन मने आयाथी मनमोहना ४रता नथी. ''अहवा न ..कारवेइ, करेंत णाणुजाणइ, मणसा वयसा १७ (७) मया विविध प्रतिपातर्नु દ્વિવિધ પ્રતિક્રમણ કરે તો શ્રાવક મનથી અને વચનથી પ્રાણાતિપાત કરાવતો નથી અને प्रातिपात ४२नारनी. ते मन्न ६॥ तेनी भनुमाना ४२ता नथी. 'अहवा न कारवेइ, करे त णाणुजाणइ मणसा कायसा १८' (८) भयका विविध प्रातिपात विध પ્રતિક્રમણ કરેતો તે શ્રાવક મનથી અને કાયાથી અન્ય દ્વારા પ્રાણાતિપાત કરાવતા નથી भने प्रतियात नारनी तमन्न मनुमानारत नथी. 'अहंवा न कारवेंइ,
SR No.009316
Book TitleBhagwati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages811
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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