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________________ ६१२ भगवतीमत्रे कुर्वन्त नानुजानाति कायेन । एते खलु ईदृशकाः श्रमणोपासकाः भवन्ति, नो खलु ईदृशका आजीविकोपासका भवन्ति ॥ मु० २ ॥ ___टीका- 'प्रत्याख्यानप्रस्तावात् तद्विशेषवक्तव्यतामाह- 'समणोवासगस्स णं भंते।' इत्यादि । 'समणोवासगस्म णं भंते ! पुत्वामेव थलए पाणाइवाए अपञ्चक्खाए भवई' गौतमः पृच्छति- हे भदन्त ! श्रमणोपासकस्य श्रावकस्य खलु पूर्वमेव सम्यक्त्वप्रतिपत्तितः प्राकालमैवेत्यर्थः स्थलः माणातिपातः अप्रत्याख्यातो भवति, प्रत्याख्यातो न भवति तस्मिन् काले देशविरतिपरिणामस्यानुत्पन्नत्वात्, किन्तु 'से णं भंते ! पच्छा पच्चाइक्खमाणे किं करेइ ?' हे भदन्त ! स खलु श्रमणोपासकः पश्चात् प्राणातिपातविरतिएरिसगा आजीवियोवासगा भवंति, इसी तरह से स्थूल अदत्तादान के, स्थूलमैथुन के, और स्थूल परिग्रह के भी भंग यावत् "अथवा काय ले करते हुए को वह अनुमोदना नहीं करता है " यहांतक जानना चाहिये । इसतरह के ये श्रमणोपासक होते हैं। आजीविको पासक इस प्रकार के नहीं होते हैं। टीकार्थ - प्रत्याख्यान के प्रस्ताव से सूत्रकार ने यहां पर प्रत्यास्स्यान के विषय में विशेष वक्तव्यतो कही है-इसमें गौतमने प्रभु से ऐसा पूछा है-'समणोबास गस्सणं भंते ! पुवामेव थूलए पाणाइ. वाए अपचक्खाए सव' हे भदन्त ! जो श्रमणोपासक-श्रावक होता है उसके सम्यक्त्व की प्रतिपत्ति (माप्ति) के पहिले प्राणातिपात का प्रत्याख्यान तो होता नहीं है - क्योंकि सम्यक्त्वप्रतिपत्ति के पहिले देशविरति के परिणाम उसके नहीं होते हैं । अतः जब उसके कायसा-एए खलु एरिसगा समणोवासमा भवंति, नो खलु एरिसगा आजीवियोवासगा भवंति ) को प्रमाणे स्थूस महत्ताहानना, स्थू भैथुनना भने स्थूल પરિગ્રહના અંગે પણ સમજવા એટલે કે “અથવા કાયથી કરનારની તે અનુમોદના કરતો નથી, ત્યાં સુધીના બધા અંગે તેમના વિશે પણ ગ્રહણ શ્રમણોપાસકો આ પ્રકારના હોય છે, આજીવિકપાસકે આવાં હેતા નથી ટીકાથઃ- પ્રત્યાખ્યાનને અધિકાર ચાલુ હોવાથી સૂત્રકારે અહીં પ્રત્યાખ્યાન વિષે વધુ વિવેચન કર્યું છે આ વિષયને અનુલક્ષીને ગૌતમ સ્વામી મહાવીર પ્રભુને એ प्रश्न ४२ छे - 'समणोवासगस्स णं भंते ! पुवामेव थूलए पाणाइवाए अपञ्चक्खाए भवइमान्त ! सम्पनी प्राति या पडसil भोपासच्या પ્રાણાતિપાતના પ્રત્યાખ્યાન કરી શકતા નથી, કારણકે સમ્યકત્વની પ્રાપ્તિ થયા પહેલાં
SR No.009316
Book TitleBhagwati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages811
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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