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________________ अमेयचन्द्रिका टीका श०८ उ. ५ . २ स्थूलप्राणातिपातादिमत्याख्याननि० ६११ भणितव्याः यावत् - अथवा कुर्वन्त नानुजानाति कायेन, श्रमणोपासकस्य खलु भदन्त ! पूर्वमेव स्थूलमृषावादः अप्रत्याख्यानो भवति, स खलु भवन्त ! पश्चात् प्रत्याचक्षाणः किं करोति ? एवं यथा प्राणातिपातस्य सप्तचत्वारिंशद्, भगत भणितं तथा मृषावादस्यापि भणितव्यम् । एवम् अदत्तादानस्यापि । एवम् स्थूलकस्य मैथुनस्यापि स्थूलकस्य परिग्रहस्थापि यावत्- अथवा करता है ? ( एव तं चेव भंगा एगूणपण्ण भाणियन्त्रा जाव अहवा करेंतं णाणुजाण कायसा ) हे गौतम ! इस विषय में समस्त कथन पूर्व में कहे हुए ४९ भंगों के अनुसार यावत् - ' अथवा काय से करते - हुवे को वह अनुमति नहीं देता है' यहाँ तक जानना चाहिये । (समणोवासगस्स णं भंते ! पुन्वामेव थूलमुसावाए अपच्चक्खाए भवइ, से णं भंते ! पच्छा पच्चाइक्खमाणे किं करेह ) हे भदन्त ! जिस श्रावकने पहिले स्थूल मृषावाद का प्रत्याख्यान नहीं किया है. पश्चात् वह जब स्थूल मृषावाद का प्रत्याख्यान करता है तो वह उस समय क्या करता है ? ' एवं जहा पाणावायस्स सीयालं भंगस भणिय, तहा मुसावायस्स वि भाणियन्त्रं 'हे गौतम ! जिस प्रकार से प्राणातिपात के १४७ भंग कहे गये हैं उसी तरह से मृषावादके भी १४७ भग जानना चाहिये । ' एवं अनिणस्स वि, एवं थूलगस्स मेहुणस्स वि, थूलगस्स परिग्गहस्स वि, जाव अहवा करें तं नाणुजोणइ, कायस ( - एए खलु एरिसमा समणोवासगा भवंति, नो खलु त्रिविधना प्रत्याभ्यान रे ? ( एव तंचेव भंगा एगूणपण भाणियन्त्रा जाव अहवा करें तं णाणुजाणइ कायसा ) डे गौतम | विषयभां यागु पूर्वेति ४८ ભંગ સમજવા એટલે કે • કાયાથી પ્રાણાતિપાત કરનારની તે અનુમાના કરતા નથી ’, त्यां सुधीना ४८ लगो मा विषयमा पशु समवा. ( समणोवासगम्स णं भंते ! पुण्यामेव थूलमुसावाए अपच्चक्खाए भवइ, से णं भंते ! पच्छा पञ्चाइक्खमाणे किं करे ? ) डे लहन्त ? ने श्राप पडेसा स्थूस भृषावाहना प्रत्याभ्यान रेखा नथी, पाछथी न्यारे स्थूलभृषावाहना अत्याच्यान हरे छे, त्यारे ते शु रे ? ( एवं जहा पाणाइवायस्स सीयालं भंगसयं भणियं, तहा मुसावायस्स वि भाणियन्त्रं ) હું ગૌતમ ! જે પ્રકારે પ્રાણાતિપાતના ૧૪૭ ભંગ (૪૪૩) કહેવામા આવ્યા છે, એજ प्रभाये भृषावाद्वना भृणु १४७ लौंग समन्वा. (एवं अदिन्नादाणस्स वि, एवं थूलगस्स मेहुणस्स विथूलगस्स परिग्गहस्स वि, जात्र अहवा करें नाणुजाणइ
SR No.009316
Book TitleBhagwati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages811
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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