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________________ · म. टीका श. ८ उ. ५ सू.२ स्थूलप्राणातिपातादिप्रत्याख्यान निरूपणम् ६:३ द्विविधेन प्रतिक्रामन् न करोति, न कारयति कुर्वन्तं नानुजानाति मनसा वचसा, ३ अथवा न करोति, न कारयति कुर्वन्तं नानुजानाति मनसा कायेन, ४ अथवा न करोति न कारयति कुर्वन्तं नानुजानाति वयमा कायेन, ५ त्रिविधम् एकविधेन प्रतिक्रामन् न करोति न कारयति, कुर्वन्तं करता है, इसी तरह से वह वचन से न प्राणानिपात करता है, न वचन से उसे कराता है न उसकी वचन से अनुमोदना करता है । इसी तरह वह कायसे न प्राणातिपात करता है न कराता है और न करनेवाले को अनुमोदना करता है । (तिविहं दविणें पडिकममाणे न करेइ, न कारवेइ, करंतं णाणुजाणह मणसा वयसा ) त्रिविधका - वह द्विविधसे प्रतिक्रमण करता है तब उम स्थिति में मनसे प्राणातिपात को नहीं करता है, दूसरोंसे उसे मनसे वह नहीं कराता है, और प्राणातिपातको करनेवालेकी अनुमोदना वह मनसे नहीं करता है इसी तरह वह वचनसे प्राणातिपातको नहीं करता है, न कराता है और न करनेवालेकी वह वचनसे अनुमोदना ही करता है । ( अहवा न करेइ, न कारवेइ, करंतं णाणुजाणइ, मणसा कायसा) अथवा मनसे एवं कायसे वह न प्राणातिपातको करता है, न उन दोनोंके द्वारा वह किसी दूसरे से उसे कराता है और न उन दोनोंके द्वारा वह उसे करनेवालेकी अनुमोदना करता है । ( अहवा न करेइ न कारवेइ, करंतं नाणुजाण वयसा कायसा) अथवा वचन और कायसे वह प्राणातिपातको नहीं करता है, न कराता है और न करनेवालेकी अनुमोदना करता है । (तिविहं एगविहेणं पडिक्कममाणे न करेह, न कारवेह, करे, न कारवे, करंतं णाणुजाणइ मणसा वयसा ) क्यारे ते त्रिविधनु द्विविधे પ્રતિક્રમણ કરે છે, ત્યારે તે મનથી પ્રાણાતિપાત કરતો નથી, ખીજા દ્વારા મનથી પ્રાણાતિપાત કરાવતા નથી, અને પ્રાણાતિપાત કરનારને મનથી અનુમેાદના આપતો નથી એજ પ્રમાણે તે વચનથી પ્રાણાતિપાત કરતો નથી, કરાવતો નથી અને કરનારને વચનથી અનુમેદના व्यापतो नथी ( अहवा - न करेइ कारवेइ, करंत णाणुजाण, मणसा कायसा ) અથવા મન અને કાયાથી તે પ્રણાતિપાત કરતો નથી, હે બન્ને દ્વારા તે બીજા પાસે પ્રાણાતિપાત કરાવતો નથી, અને તે બન્ને દ્વારા તે પ્રાણાતિપાત કરનારની અનુમેદના ठरतो नथी ( अहवा न करेइ न कारवेइ, करंवं नाणुजाणइ वयसा कायसा ) અથવા વચન અને કાયાથી મે પ્રાણાતિપાત કરતા નથી, અને કરનારની અનુમેદના કરતા नथी (तिविहं एगविणं पडिक्कममाणे न करेइ, न कारवेइ, करंतं णाणुजाणइ "
SR No.009316
Book TitleBhagwati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages811
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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