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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श. ८ उ. २ मू. ११ ज्ञानगोचरनिरूपणम् ५०९ हे भदन्त श्रुताज्ञानस्य खलु कियान विषयः प्रशप्तः ? भगवानाह - 'गोयमा ! से समास च पष्णत्ते' हे गौतम! स श्रुताज्ञानस्य विषयः, तद्वा श्रुताज्ञानं समासेन संक्षेपेण चतुर्विध प्रज्ञप्तम्, ' त जहा - दव्चओ, खेत्तओ, कालओ, भावओ' द्रव्यत, क्षेत्रतः, कालतः, भावतश्च, 'दव्वओणं सुयअन्नाणी सुयअन्नाणपरिगयाई दव्वा आघवेड़, पन्नवेइ, परूवेड़' द्रव्यतः श्रुताज्ञानविषयं द्रव्यमाश्रित्य खलु श्रुताज्ञानी श्रुताज्ञानपरिगतानि श्रुताज्ञानेन मिथ्यादृष्टिपरिगृहीतेन विषयीकृतानि द्रव्याणि आख्यापयति, प्रख्यापयति इत्यर्थः, मज्ञापयति भेदपूर्वकं कथयति, प्ररूपयति-उपपत्तितो निरूपयति, एवं खेत्तओ, कालओ' एवम् उक्तरीत्या क्षेत्रतः श्रताज्ञानविषयं कालमाश्रित्य श्रुताज्ञानी श्रुनाज्ञानपरिगत क्षेत्रम्, आख्यापयति यावत् प्ररूपयति, एवं hase विस पण्णत्ते' हे भदन्त ! श्रतअज्ञोनका विषय कितना कहा गया है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं - 'गोयमा' हे गौतम ! 'से सम (सओ चच्चिहे पण ते ' श्रुताज्ञानका विषय अथवा श्रुताज्ञान संक्षेपसे चार प्रकारका कहा गया है 'तंजहा' जैसे- 'दव्वओ, खेत्तओ, कालओ, भावओ' द्रव्यकी अपेक्षा, क्षेत्रको अपेक्षा, कालकी अपेक्षा और भावकी अपेक्षा 'दव्वओणं सुयअन्नाणी, सुयअन्नाणपरिगयाई दव्वाई आघवेड़, पनवेइ, परूवेश, द्रव्यकी अपेक्षा लेकर अताज्ञानी मिथ्यादृष्टि द्वारा परिगृहीत हुए मत्यज्ञान से विषयीभूत द्रव्योंका कहता है जानता है, भेदपूर्वक उनका कथन करता है, युक्तिपूर्वक उनका निरूपण करता है । 'एवं खेत्तओ कालओ' इसी तरहसे क्षेत्रकी अपेक्षा लेकर नाज्ञानी अपने विषयभूत क्षेत्रको कहता है यावत् युक्तिपूर्वक उसका निरूपण करता है । कालकी अपेक्षा लेकर श्रुताज्ञानी अपने विषयभूत , विषय डेटा या हे ? ७ :- ' गोयमा ' हे गौतम । 'से समासओ चउन्विहे पण्णत्ते'શ્રુતઅજ્ઞાનના વિષય सक्षिप्तमा थार अठारे हेला छे 'तं' जहा' नेम 'दव्नओ, खेत्ताओं, कालओ, भावओ ' द्रव्यनी अपेक्षा, क्षेत्रनी अपेक्षा, भजनी अपेक्षाये, भ्यते भावनी अपेक्षाथी 'व्वओ णं सुय अन्नाणी, सुयअन्नाणपरिगयाई दव्बाई आघवे, पण्णवेइ, परूवेई ' द्रव्यनी अपेक्षाथा श्राज्ञानी मिथ्यादृष्टिद्वारा विषयभूत થયેલા મત્યજ્ઞાનના વિષયી કહેલા દ્રવ્યેને કહે છે અને જાણે છે. ભેદપૂર્ણાંક તેનુ કથન કરે છે; યુતિપૂર્ણાંક તેનુ નિરૂપણ કરે છે. एवं खेत्तओ कालओ' मेल रीते क्षेत्रनी અપેક્ષાએ શ્રુતજ્ઞાની પેાતાના વિષયભૂત ક્ષેત્રને કહે છે પાવત – યુકિતપૂવ ક તેનુ નિરૂપશ્ કરે છે. માળની અપેક્ષાને આશ્રય કરીને જીતાજ્ઞાની પેાતાના વિષયભૂત કાળને કહે છે— L
SR No.009316
Book TitleBhagwati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages811
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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