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________________ चन्द्रिका टीका श. ८ उ. २ स. ११ ज्ञानगोचर निरूपणम् ५०७ क्षेत्रं जानाति, पयति, कालतः खलु केवलज्ञानी सर्वं कालं जानाति, पश्यति, भावतः खलु केवलज्ञानी सर्वान् भावान् जानाति, पश्यति । गौतमः पृच्छति - 'मइअम्नाणस्स णं भंते ! केवइए विसए पष्णते ?' हे भदन्त ! मत्यज्ञानस्य खलु कियान् विषयः प्रइष्टः ? भगवानाह - 'गोयमा ! म मत्यज्ञानस्य विषयः, तद्वा मत्यज्ञानं समागतः संक्षेपेण चतुर्विधं प्रज्ञप्तम्, 'तंजहा दव्त्रओ, खेत्तओ, कालओ, भावओ, तद्यथा- द्रव्यतः, क्षेत्रतः, कालतः, भावतः, 'दओ णं मइअन्नाणी मइअनाणपरिगयाई दव्वाइ जाण, पास ' द्रव्यतो मत्यज्ञानविषयं द्रव्यमाश्रित्य खलु मत्वज्ञानी सत्यज्ञानपरिगतानि मत्यज्ञाने मिथ्यादर्शनसंवलितेन अवग्रहादिना औत्पत्तिक्यादिना च परिगतानि केवलज्ञानी समस्त क्षेत्रको जानता है और देखता है, कालको अपेक्षा केवलज्ञानी समस्त कालको जानता है और देखता है, भावकी अपेक्षा केवलज्ञानी समस्त भावोंकों जानता है और देखता है । अब गौतम स्वामी प्रभुसे ऐसा पूछते हैं 'म अन्नाणस्स ण भंते ! केवइए विसए पण्णत्ते' हे भदन्त । मत्यज्ञानका विषय कितना कहा गया है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं- 'गोयमा' हे गौतम! 'से समासओ चउन्विहे पण्णत्ते' मत्यज्ञान का विषय या मनिअज्ञान संक्षेपसे चार प्रकारका कहा गया है । 'तंजहा' जो इस तरहसे है- 'दव्वओ, खेत्तओ, कालओ. भावओ' द्रव्यकी अपेक्षा, क्षेत्रकी अपेक्षा, कालकी अपेक्षा और भावकी अपेक्षा 'दवओ णं मइअन्नाणी मडअनाणपरिगया ई दवाई जाइ, पास' मत्यज्ञानी द्रव्यकी अपेक्षा लेकर सत्यज्ञान के विषयभूत हुए द्रव्योंको जानता है और देखता है । तात्पर्य कहने का यह हैमिथ्यादर्शनके युक्त अवग्रह, ईहा आदिके द्वारा और औत्पत्तिकी ક્ષેત્રની અપેક્ષા કેવળજ્ઞાની સમસ્ત ક્ષેત્રને જાણે છે અને દેખે છે, ભાવની અપેક્ષાએ કેવળજ્ઞની સધળા ભાવને જાણે છે અને દેખે છે પ્રશ્ન मईअन्नाणस्स णं भंते ! hare fare पण्णत्ते ' हे भगवान् भत्यज्ञानना विषय उटा ह्या छे? :गोयमा हे गौतम! से समासओ विहे पण्णत्ते' भतिज्ञानतो विषय સક્ષિપ્તથી ચાર પ્રકારને કહેલ છે तं जहा ' म 'दव्वओ, खेत्तओ, कालओ, भावओ ' द्रव्यनी अपेक्षाये, क्षेत्रनी अपेक्षा, अजनी अपेक्षा भने आवनी अपेक्षाओ 4 C " 4 " दवओ णं मइअण्णाणी मइ अन्नाणपरिगयाई दव्वाई जाणड पासइ મત્યજ્ઞાની દ્રવ્યની અપેક્ષાને આશ્રય કરીને મત્યજ્ઞાનના વિષય ભૂત થયેલ દ્રવ્યાને જાણે છે અને દેખે છે. કહેવાના હેતુ એ છે કે કૃમિથ્યાદ નથી મુક્ત અવગ્રાહ, ઇડા, આદિ
SR No.009316
Book TitleBhagwati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages811
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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