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________________ पमेयर्चान्द्रका टीका श.८ उ. २ ० ११ ज्ञानगोचरनिरूपणम् गावरानरूपणम् ५०५ अनन्तमदेशिकान् अनन्तपरमाणुरूपस्कन्धान जानाति, पश्यति, यथा नन्यां नन्दीमूत्रे प्रतिपादितम् तथा अत्रापि प्रतिपत्तव्यम्. वक्तव्यनन्दीमत्रावधिमाहयावत्- भावतो भावाधिकारपर्यन्तमित्यर्थः, तत्रत्य भावसूत्रश्चैवम्- 'भावओ णं उज्जुमई अणते भावे जाणइ, पासड, सबभावा णं अणंतभागं जाणइ, पासइ, त चेत्र विउलमई विसुद्धतरागं जाणइ, पासइ' भावतः खलु ऋजुमतिः अनन्तं भावं जानाति, पश्यति, सर्वभावानाम् अनन्तभागं जानाति, पश्यति, तदेव विपुलमतिः विशुद्धतरकं जानाति पश्यति, इनि । गौतमः पृच्छति'केवलनाणस्स ण भंते ! केवइए, विसर पण्णत्ते ?' हे भदन्त ! केवलज्ञानस्य खलु कियान विषयः प्रज्ञप्तः ? भगवानाह- 'गोयमा ! से समासओ चउबिहे मति सरलपदार्थको ग्रहण करनेवाली होती है वह ऋजुमति है । इस व्युत्पत्तिके अनुसार ऋजुमतिवाला जीव 'ऋजुमति' प्रकट किया गया है। नंदीसूत्र में यह विषयं 'जाव भावओ णं उज्जुमई अणंतेभावे जाणइ, पासइ, सम्वभावाणं अणतं भावं जाणइ पासइ, तंचेव विउलमई विसद्धतरागें जाणइ, पास' भावकी अपेक्षा ऋजुमति अनन्त भावोंको जानता है, देखता है, तथा सब भावोंके अनन्तवे भागको जानता और देखता है । विपुलमति उन्ही अनन्त भावों को तथा सब भावोंके अनन्तवें भागको अधिकतर विशुद्ध शुद्धरूपसे जानता है और देखता है । अब गौतम स्वामी प्रभुसे ऐसा पूछते हैं केवलनाणस्स णं भंते ! केवइए विसए पण्णत्ते' हे भदन्त ! केवलज्ञान का मतिर्यस्यासौ ऋजुमतिः'नी शुद्धि स२ पान ४२वावाणी डाय ते नुमति छे ते व्युत्पत्ति अनुसार भतिवाणा ने 'ऋजुमति' नुमति ४स नदीसूत्रमा मा विषय 'जाव भावओ' मही सुधा डa छे त्यांनु माप संधी सूत्र मा प्रभारी छ. 'भावओं णं उज्जुमई अणं भावे जाणइ, पासइ, सन भावेणं अणंतभागं जाणइ पासइ, त चेव विउलमई विसुद्धतराग जाणइ पासइ मापनी अपेक्षा अनुमति मनातावाने तो छ भने हे छे तथा सघणा ભાવના અનંતમાં ભાગને જાણે છે અને દેખે છે વિપુલમતિ તેજ અનંતભાવોને તથા સઘળા ભાવોના અનંતમાં ભાગને વિશેષ વિશુદ્ધ શુદ્ધરૂપથી જાણે છે અને દેખે છે. प्र :- केवलनाणस्स णं भंते केवइए विसए प०णत्ते 'भगवान! 4शानना विषय वा पाय छ ? 'गोयमा' ७. - ' से समासओ वउबिहे पणत्ते ' गोतम ! जानन विषय सोप्तथी या२ रेन डस छ 'त जहा'
SR No.009316
Book TitleBhagwati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages811
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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