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________________ ५०४ भगवतीमत्रे पण्णते?' हे भदन्त ! मनःपर्यवज्ञानस्य खलु कियान् विषयः प्रज्ञप्तः ? भगवानाह- 'गोयमा! से समासओ चउचिहे पण्णत्ते' हे गौतम ! स मन:पर्यवज्ञानविषयः, तद् वा मनःपर्यनज्ञानं समासतः संक्षेपतः चतुर्विध प्रज्ञप्तम् 'तंजहा- दबओ, खेत्तओ, कालओ, भावओ' तद्यथा- द्रव्यतः, क्षेत्रतः, कालतः, भावतः, 'दचआणं उज्जुमई अणं ते अणंतपएसिए जहा नंदीए जाव भावओ' द्रव्यतो मनःपर्यवज्ञानविषयं द्रव्यमाश्रित्य खलु ऋजुमतिः, मननं गतिः संवेदनम्, ऋज्वी सामान्यग्नाहिणी सतिः ऋजुमतिः- 'घटोऽनेन चिन्तितः' इत्येवमध्यवसायजन्या मनोद्रव्यपरिच्छित्तिः मनःपर्यवज्ञानमित्यर्थः। अथवा ऋज्वी मतिर्यस्य असो ऋजुमतिः तद्वानेव गृह्यते, अनन्तान् अपरिमितान् कहा गया है- 'से समासओ चउन्विहे पणत्ते' हे गौतम ! मनःपर्यवज्ञानका विषय अथवा वह सनःपर्यवज्ञान संक्षेपसे चार प्रकारका कहा गया है- 'तंजहा' जो इस तरहसे हैं- 'व्यओ, खेतओ, कालओ, भावओ' द्रव्यसे, क्षेत्रसे, कालसे और भावले 'दबओ णं उज्जुभई अणते अणंतपएसिए जहा नंदीए जाव भावओ' मनापर्यव. ज्ञानके विषयभूत द्रव्यको आश्रित करके ऋजुमति मनःपर्ययज्ञानी एनंतपदेशवाले अनन्त परमाणुरूप स्कंधोंको जानता है और देखता है। इस विषयमें जैसा नंदीसूत्रों कहा गया है वैसा ही यहां पर जानला चाहिये । 'अननं मतिः' इस व्युत्पत्तिके अनुसार मति शब्दका अर्थ संवेदन-ज्ञान है। सामान्यको ग्रहण करनेवाली जो मति वह ऋजुमति है। 'घटोऽनेन चिन्तितः' इसने घटका विचार किया है इस प्रकारके अध्यवसायसे जन्य जो मनोद्रव्यकी परिच्छित्ति ज्ञानहै वह ऋजुमति मनापर्यवज्ञान है । अथवा- 'ऋज्वी अति यस्थासौ ऋजुमतिः' जिलकी गौतम । सक्षितमा यार प्राश्ना छ त जहा'२ मा ४ारे छ 'दव्वओ, खेत्तओ, कालओ, भावओ' न्यथी, क्षेत्रथी, जथा मने माथी 'व्वओ णं उज्जुमइअणंते अणंतपणसिए जाहा नंदीए जाच भावओ' मनः ५ वशानना વિષયભૂત દ્રવ્યને આશ્રય કરીને ત્રાજુમતિ અને પર્યાવજ્ઞાની અનંતપ્રદેશવાળા અનંત પરમાણુરૂપ ક ને જાણે છે અને દેખે છે. આ વિષયમાં નદીસૂત્રમાં કહ્યું છે. તેવી જ शत मही' ५५] सभ७ वे 'मननं मतिः' से व्युत्पत्ति अनुसार भति शम्ने। मथ सहन शान छ सामान्यने अड ४२वानी रे भति अनुमति छ. 'घटोऽनेन चिन्तितः' ये पायमा धान पियार 3रे छ. मे प्रा२ना निरंतर व्यवसायथी थवापाणु भाद्रव्यनी पछिति छ. ते नुमति मन:५१ जान छ. अथवा "ऋज्वी
SR No.009316
Book TitleBhagwati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages811
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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