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________________ ! प्रमेयचन्द्रिका टीका श. ८ उ. २ सु. १० लब्धिस्वरूपनिरूपणम् 1 भनयैव भवन्ति । अथ साकारोपयोगभेदापेक्षया माह - आभिणिवोहियनाणसागरोत्ताणं भंते ! जीवा किं नाणी, अन्नाणी ?' हे भदन्त ! आभिनिबोधिकज्ञानसाकारोपयुक्ताः खलु जीवाः किं ज्ञानिनो भवन्ति, अज्ञानिनो वा ? भगवानाह - 'चत्तारि णाणाई भयणाए' हे गौतम ! आभिनिवोधिकज्ञान साकारोपयोगवन्तो जीवाः ज्ञानिनो भवन्ति तेषाश्च चत्वारि ज्ञानानि मतिश्रुतावधिहोता है- इनमें साकार उपयोग आठ प्रकारका और अनाकार उपयोग तीन प्रकारका होता है- सो अब गौतम स्वामी साकार उपयोग के भेदोंको आश्रित करके प्रभुसे ऐसा पूछते हैं कि- 'आभिणिबोहियनाण सागारोव उत्ताणं भंते ! जीवा किं नाणी अन्नाणी' हे भदन्त ! जो जीव आभिनियोधिक ज्ञानरूप साकार उपयोगमें उपयुक्त होते हैं = वे क्या ज्ञानी होते हैं या अज्ञानी होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं- ' चत्तारि णाणाई भयणाए हे गौतम! आभिनिवोधिक ज्ञानरूप साकार उपयोगवाले जीव ज्ञानी होते हैं उन में चार ज्ञान भजनासे होते हैं । एक मतिज्ञान, दूसरा श्रुतज्ञान, तीसरा अवधिज्ञान, और चौथा मनः पर्यवज्ञान. कहने का तात्पर्य यह है कि जब जीवांका मतिज्ञानमें उपयोग होता है- तब लब्धि की अपेक्षा उनमें चार ज्ञान तक रह सकते हैं क्यों कि एक जीव में एक साथ 'एकादीनि भाज्यानि युगपदेकस्मिन्नाचतुर्भ्यः' इस सिद्धान्तवाक्य के अनुसार चार ज्ञान तक हो सकते । इसीका नाम भजना है । दो होंगे तो मतिज्ञान और श्रुतज्ञान, तीन होंगे तो मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान अथवा - मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, मनःपर्यवज्ञान और चार होंगे तो मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, તેમાં સાકાર ઉપયોગ આઠ પ્રકારના અને અનાકાર ઉપયેગ ત્રણ પ્રકારના હેાય છે. હવે ગૌતમ સ્વામી સાકારે પયેાગના ભેને ઉદ્દેશીને પ્રભુને એવુ પૂછે છે કે ' आभिणिवोडियनाण मागारोवउत्ताणं भंते जीवा किं नाणी अन्नाणी ' हे लहन्त ! ने છત્ર નિમાલિક જ્ઞાનરૂપ સાકાર ઉપયાગમાં ઉપયુકત હાય તેવા જીવા જ્ઞાની હાય છે કે અજ્ઞાની ? उत्तर :- चत्तारि नाणारं भयणाए' मालिनिमोधि ज्ञानप सायियोगवाजा જીત્ર જ્ઞાની હાય છે તેમા મતિજ્ઞાન, શ્રુતજ્ઞાન, અવધિજ્ઞાન અને મનઃવજ્ઞાન એ ચાર જ્ઞાન ભજનાથી ડેાય છે. કહેવાનું તાત્પર્ય એ છે કે જ્યારે જીવાના મતિજ્ઞાનમાં ઉપયોગ થાય છે ત્યારે લબ્ધિની અપેક્ષાએ તેમનામા ચાર નાન रगुठे शोष्ठ लवमां मे४ साथै 'एकादीनि भाज्यानि युगपदे એ સિદ્ધાંત વાકયાનુસાર ચાર જ્ઞાન પર્યંત હાઇ શકે છે તેની ४७१ સુધી રહી શકે છે. कस्मिन्नाचतुर्भ्यः સાથે કેવળજ્ઞાન હતું
SR No.009316
Book TitleBhagwati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages811
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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