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________________ भगवतीसूत्रे च भवनपतिदेवपञ्चेन्द्रियप्रयोगपरिणताः पुद्गलाः कतिविधाः प्रज्ञप्ताः ? भगवानाह - ‘गोयमा ! दसविहा पण्णत्ता' हे गौतम ! भवनवासिदेवपञ्चेन्द्रियप्रयोगपरिणताः दशविधाः प्रज्ञप्ताः 'तं जेहा' - तद्यथा- 'असुर कुमारा जाव थणियकुमारा' असुरकुमाराः १, यावत् - नागकुमाराः२, सुवर्णकुमाराः ३, विद्युत्कुमाराः ४, अग्निकुमाराः ५, द्वीपकुमारा ६, उदधिकुमाराः ७, दिवकुमारा: ८. वायुकुमारा: ९, स्तनितकुमागः १० । 'एवं एएणं अभिलावणंअट्टविहा वाणमंतरा-पिसाया जाव गंधव्या' एवं रीत्या एतेन अभिलापेन उक्तमवनवास्थालापकनमेण अष्टविधाः वानव्यन्तराः प्राप्ताः, तद्यथा-पिशाचा १ यावत् भूताः', यक्षाः, राक्षसाः४, किन्नराः५, किम्पुरुषाः,६ महोरगाः७, गन्धर्वाः८, । 'जोइसिया पंचविहा पण्णत्ता' ज्योतिपिकाः पञ्चविधाः प्रज्ञप्ताः 'तं जहा-' तद्यथा-'चंदविमाणजोइसिय० जाव तारात्रिमाणजोइ. प्रयोगपरिणत पुद्गल कितने प्रकारके कहे गये हैं ? इसके उत्तरमें प्रभु कहते हैं 'गीयमा' हे गौतम ! भवन पति देव पञ्चेन्द्रिय प्रयोगपरिणत पुद्गल 'दसविहा पण्णत्ता' दश प्रकारके कहे गये हैं। 'तंजहा' वे इस प्रकार से हैं 'असुरकुमारा जाव थणियकुमारा' असुरकुमार नागकुमार, सुवर्णकुमार, विद्युत्कुमार, अग्निकुमार, डीपकुमार, उदधिकुमार, दिञ्जमार, वायुकुमार और स्तनितकुमार । 'एवं एएणं अभिलावेणं अट्ठविहा वाणसंतरा पिसाया जाव गंधव्वा, इस उक्त अवनवासीके आलापक क्रमके अनुसार आठ प्रकारके वानव्यतिर कहे गये हैं। जो इस प्रकारले हैं पिशाच भूत, यक्ष, राक्षस, किन्नर, किम्पुरुष, अहोरग और गंधर्व, 'जोहसिया पचविहा पण्णत्ता' ज्यो. लिपिक पांच प्रकारके कहे गये हैं जो इस प्रकार से हैं 'चंदविमाण उत्तर- 'गोयमा !' गीतमा ! 'दसविता पण्णत्ता-त जहा' मवनपतिव ५ येन्द्रिय प्रयोगपति हासन नाथे प्रमाणे इस १२ Hai छ- 'अमरकुमारा जाव णयकुमारा' (१) मसुमार, (२) नागभार, (3) सुपरमार (४) विधुतभार, (५) भनिठुमार, (७) द्वीपभा२, (७) अधिभार, (८) भा२, (e) वायुमार सने (१०) २तनितभा२ ५व्येन्द्रिय प्रयोगपरित युगल. "एवं एएणं अभिलावेणं अट्ठबिहा वाणमंतरा पिसाया जाच गंधव्या' ५युत सपनपतिना આલાપક ક્રમાનુસાર વાનવ્ય તર દેવ પણ આઠ પ્રકારના કહ્યા છે– (૧) પિશાચ (૨) भूत, (3) यक्ष, (४) राक्षस, (५) निर, (६) पुरुष (७) महे।२॥ मने (८) गधव 'जोइसिया पंचविहा पण्णत्ता' न्यौतष वाना नाये प्रमाणे पाय २ -
SR No.009316
Book TitleBhagwati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages811
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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