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________________ ४५८ भगवतीसूत्रे प्तकाः सासादनगुणस्थानकवर्तिसम्यग्दर्शनो विकलेन्द्रियाः, एकज्ञानिनो वा केवलज्ञानिनः, ते हि श्रोत्रेन्द्रियालब्धिकाः इन्द्रियोपयोगाभावात्, 'जे अन्नाणी ते नियमा दुअन्नाणी, तं जहा-मडअन्नाणी य, सुयभन्नाणी य' ये तु श्रोत्रे. न्द्रियालब्धिमन्तोऽज्ञानिनस्ते नियमात् इत्यज्ञानिनो भवन्ति, आद्यद्धयाज्ञानशालिनः, तद्यथा-मत्यज्ञानिनश्च, श्रुताज्ञानिनश्च, 'चक्खिदियघाणिदिया णं लद्धियाणं अलद्धियाण य जहेव सोइंदियस्स' चक्षुरिन्द्रिय-घ्राणेन्द्रियाणां लब्धिकानाम् चक्षुरिन्द्रियलब्धिकानां घ्राणेन्द्रियलब्धिकानामित्यर्थः, एवम् तदुभयालब्धिकानाच यथा श्रोत्रेन्द्रियस्य लब्धिमतां चत्वारि ज्ञानानि भजनया, त्रीणि चाज्ञानानि भजनयैव, तदलब्धिमतां च द्वे च ज्ञाने, च अज्ञाने, एकं च ज्ञानमुक्तम् स्थानवर्ती सम्यग्दृष्टि विकलेन्द्रिय जीवों को ग्रहण किया गया है तथा एक ज्ञानवाले जो केवली यहाँ ग्रहण किये गये हैं उसका कारण यह है कि केवलियों में इन्द्रियजन्य उपयोगका अभाव होता है अतः वे भी श्रोत्रइन्द्रियालब्धिकोमें परिगणित हुए हैं। 'जे अन्नाणी ते नियमा दुअन्नाणी तंजहा-सह अन्नाणीय, सुय अन्नाणी य' तथा इन श्रोत्रइन्द्रियालन्धिकोंमें जो जीव अज्ञानी होते हैं वे नियम से दो अज्ञानवाले-मतिअज्ञानवाले और श्रुतअज्ञानवाले होते हैं । 'चक्खिदिय घाणिदियाणं लधियाणं अलद्धियाण य जहेव सोइंदियस्स' चक्षु. इन्द्रिय लब्धिवाले जीवोंमें तथा घ्राणेन्द्रिय लब्धिवाले जीवों मे और इन दोनोंकी अलब्धिवाले जीवोंमें ज्ञानी और अज्ञानी दोनों प्रकारके जीव होते हैं। सो जिस प्रकारसे श्रोनेन्द्रियकी लब्धिवालोंमें भजनासे चार ज्ञान और तीन अज्ञान होते कहे गये हैं तथा इसकी अलब्धिवालोंमें दो ज्ञान, दो अज्ञान और एक ज्ञान कहा गया है इसी વિકલેન્દ્રિય જીવોને ગ્રહણ કર્યા છે. તથા એક જ્ઞાનવાળા જે કેવળીનું અહીં ગ્રહણ કરાયું છે. તેનું કારણ એ છે કે કેવળીઓમાં ઇદ્રિયજન્ય ઉપગને અભાવ હોય છે. એટલે તેઓની ५५ श्रोत्रद्रिय सलाम गाना ४२राध . जे अन्नाणी ते नियमा दुन्नाणी तं जहा मइअन्नाणीय, सुयअन्नाणीय' तया श्रीसदिय म म ने અજ્ઞાની હોય છે તેઓ નિયમથી મતિજ્ઞાન અને શ્રુતઅજ્ઞાન એમ બે જ્ઞાનવાળા डाय 2. ' चक्खि दिय घाणिदियाणं लधियाणं अलद्धियाण य जहेव सोइंदियस्स' ચક્ષુઈદ્રિયલબ્ધિવાળા માં તથા ઘણેન્દ્રિયલબ્ધિવાળા જીવોમાં અને તે બંનેની અલબ્ધિવાળા માં જ્ઞાની અને અજ્ઞાની એમ બંને પ્રકારના જ હોય છે. તે કેવી રીતે ? શ્રેત્રેન્દ્રિયની લબ્ધિવાળાઓમાં ભજનાથી ચાર જ્ઞાન અને ત્રણ અજ્ઞાન કહેલ છે.
SR No.009316
Book TitleBhagwati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages811
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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