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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श ८ उ. २ स. ९ लब्धिस्वरूपनिरूपणम् ४५५ अलद्धियाणं पच नाणाई, तिन्नि अन्नाणाई भयणाए' तस्य बालपण्डितवीर्यस्य संयतासंयतस्य अलब्धिकानाम् अश्रावकाणाम् पञ्च ज्ञानानि, त्रीणि अज्ञानानि भजनया भवन्ति । गौतमः पृच्छति-'इंदियलद्धिया णं भंते ! जीवा किं नाणी, अन्नाणी ?' हे भदन्त ! इन्द्रियल ब्धिकाः खलु जीवाः किं ज्ञानिनो भवन्ति, अज्ञानिनो वा ? भगवानाह-गोयमा ! चत्तारि णाणाई, तिनि य अन्नाणाई भयणाए' हे गौतम ! इन्द्रियलब्धिकानां चत्वारि ज्ञानानि, त्रीणि च अज्ञानानि पण्डितवीर्यकी अलब्धिवाले होते हैं 'तस्सअलद्धियाणं पच नाणाइ तिम्नि अन्नाणाइ भयणाए' वे ज्ञानी भी होते हैं और अज्ञानी भी होते हैं जो जीव इनमें ज्ञानी होते हैं उनमें भजनाले पांच ज्ञान तक हो सकते हैं और जो अज्ञानी होते हैं उनमें भी भजनासे तीन अज्ञान तक हो सकते हैं। बालपण्डितवीर्यका तात्पर्य संयतासंयतसे है- इसकी अलब्धिवाले अश्रावक होते हैं । अश्रावकमें सिद्ध भी आजाते हैं। अतः इसी अपेक्षासे यहां पांच ज्ञानोंका होना भजनासे कहा गया है। ___ अब गौतम स्वामी प्रभुसे ऐसा पूछते हैं- 'इ दियलद्धियाणं भंते ! जीवा किं नाणी, अन्नाणी' हे भदन्त! जो जीव इन्द्रियलब्धिवाले होते हैं वे क्या ज्ञानी होते हैं या अज्ञानी होते हैं ? इसके उत्तरमें प्रभु कहते हैं- 'चत्तारि नाणाइ तिन्नि य अन्नाणाइं भयणाए' हे गौतम ! जो जीव इनमें ज्ञानी होते हैं उनको भजनासे चार ज्ञान होते हैं और जो अज्ञानी होते हैं उनमें तीन अज्ञान भजनासे होते हैं। इन्द्रियलब्धिवाले ज्ञानियोंमें केवलज्ञान नहीं होता है, क्यों कि PRADEqum sोय तया तस्स अलद्धियाणं पंचनाणाई तिन्नि अन्नाणाई भयणाए' જ્ઞાની પણ હોય છે અને અજ્ઞાની પણ હોય છે જે જીવ નેઓમાં જ્ઞાની હોય છે તેમાં પાંચ જ્ઞાન ભજનાથી હોય છે અને જે જીવ અજ્ઞાની હોય છે તેઓને ગણુ અજ્ઞાન ભજનાથી હોવાની શક્યતા છે -હાય છે બાળપતિવીર્યનુ તાત્પર્ય સંયતા સયતથી છે. તેની અલબ્ધિવાળા અશ્રાવક હોય છે અશ્રાવકમાં સિદ્ધો પણ આવી જાય છે એટલા भाटे ते अपेक्षाव्ये पाय जानानु डाg -AVनायी युछ प्रम - 'इंदियलद्धियाणं भंते जीवा किं नाणी अन्नाणी, मह-त! रे ७५ द्रिय epal S५ छ. तेमा जानी डाय छ , अज्ञानी 26:-'चत्तारिनाणाई तिन्नि य अन्नाणाई भयणाए' હે ગૌતમ! જે જીવ તેઓમાં જ્ઞાની હેય તેઓને ભજનાથી ચાર જ્ઞાન હોય છે અને જે અજ્ઞાની હોય છે તેઓમાં ભજનાથી ત્રણ અજ્ઞાન હોય છે ઈદ્રિયલબ્ધિવાળા જ્ઞાનીએમાં કેવળજ્ઞાન હોતુ નથી કેમકે કેવળીઓમાં ઈદિયેના ઉપયોગને અભાવ હોય છે.
SR No.009316
Book TitleBhagwati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages811
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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