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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श ८ उ. २ सु. ८ लब्धिस्वरूपनिरूपणम् ४३१ टीका- गौतमः पृच्छति - 'दंसणलद्धिया णं भंते! जीवा कि नाणी, अनाणी ?' हे भदन्त ! दर्शनलब्धिकाः श्रद्धानमात्रलब्धिकाः खलु जीवाः किं ज्ञानिनो भवन्ति, अज्ञानिनो वा ? भगवानाह - 'गोयमा ! नाणी वि अम्भाणी वि' हे गौतम ! दर्शनलब्धिका जीवाः ज्ञानिनोऽपि भवन्ति, अज्ञानिनोऽपि भवन्ति, तत्र सम्यक् श्रद्धानवन्तो ज्ञानिनस्तदितरे तु मिथ्या श्रद्धानवन्तः अज्ञानिन इति भावः । 'पंच नाणाई, तिन्नि अन्नाणाई भयणाए' तत्र ज्ञानिनां सम्यक् श्रद्धानवतां भजनया पञ्च ज्ञानानि, अज्ञानिनां तु त्रीणि अज्ञानान्यपि भजनयैव अलद्धी तहेव भाणियन्वं) सम्यग्मिथ्यादर्शनलब्धिवाले और इसकी लब्धि विना के जीव जैसे मिथ्यादर्शनकी लब्धिवाले और इसकी अलब्धिवाले जीव कहे गये हैं वैसे ही कहना चाहिये । टीकार्थ- गौतमस्वामीने प्रभुसे ऐसा पूछा है 'दंसणलदियाणं भंते ! जीवा किं नाणी, अन्नाणी' हे भदन्त ! दर्शनलब्धिवाले श्रद्धान मात्र लब्धिवाले जीव क्या ज्ञानी होते हैं या अज्ञानी होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं 'गोयमा' हे गौतम ! 'नाणी वि अन्नाणी वि' दर्शनलब्धिवाले जीव ज्ञानी भी होते हैं और अज्ञानी भी होते हैं । इनमें ज्ञानी वे होते हैं जो सम्यकुश्रद्धान वाले होते हैं। और जो मिथ्या श्रद्धान वाले होते हैं वे अज्ञानी होते हैं | पंच नाणाई तिन्नि अन्नाणाइ' भयणाए' सम्यग् श्रदानवाले ज्ञानियोंको भजन से पांच ज्ञान होते हैं, तथा मिथ्या श्रदानवाले अज्ञानियोंको तीन अज्ञान भी भजना से ही होते हैं । ज्ञानियों में यदि एक ज्ञान हो तो वह केवल - ज्ञान होता है, दोज्ञान हों तो वे मतिज्ञान और श्रुतज्ञान होते हैं, भाणियव्यं' सम्मभूमिथ्यादर्शन सम्धिवाणा भने तेनी सम्धिथी रहित लव लेवी रीते મિથ્યાદર્શીન લબ્ધિવાળા અને તેની અલબ્ધિવાળા જીવાને વિષે કહ્યુ છે તે પ્રમાણે સમજી લેવું, टीअर्थ :- गौतम स्वाभीमे अलुने मे पूछयु ! 'दंसणलद्धियाणं भंते जीवा किं नाणी अन्नाणी' हे भगवान् ! दर्शनसम्धिवाणा लव ज्ञानी होय छे अज्ञानी ? उत्तर .' गोयमा' हे गौतम! ' नाणी त्रि अन्नाणी त्रि' दर्शनसन्धिवाणा જ્ઞાની પણ હેાય છે અને અજ્ઞાની પણ હેય છે તેમા જ્ઞાની તે ડૅાય છે કે જે સમ્ભશ્રૃહાનવાળા હાય छे भने मिथ्या श्रद्धानवाजा होय हे ते अज्ञानी होय छे. 'पंचनाणाई तिनि अन्नाणाई भयणाए ' સમ્મશ્રદ્ધાનવાળા જ્ઞાનીઓને ભજનાથી પાચ જ્ઞાન હૈાય છે તથા મિથ્યાશ્રદ્ધાનવાળા અજ્ઞાનીઓને ત્રણ અજ્ઞાન ભજતાથી હાય છે જ્ઞાનીએમા જે એકજ જ્ઞાન હાય તા તે કેવળજ્ઞાન જ હાય છે. એ જ્ઞાન હોય તે મતિજ્ઞાન અને શ્રુતજ્ઞાન હોય છે.
SR No.009316
Book TitleBhagwati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages811
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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