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________________ अमेयचन्द्रिका टीका श.८ उ. २ म. ७ लब्धिस्वरूपनिरूपणम् ४२१ सन्ति एकके केचन अवधिमानलब्धिकाः निमानिनः, केवलमनापर्यवनाना सद्भावे विज्ञानिनो भवन्ति, सन्ति एकके केचन चतुर्मानिनो भवन्ति, तेषां केवलनानाभावात्, तत्र-'जे तिन्नाणी ते आभिणिबोडियनाणी, मुयनाणी ओहिनाणी' ये विज्ञानिनोऽवधिज्ञानलन्धिकास्ते आभिनिवोषिक मानिनः, शुतज्ञानिनः, अवधिशानिनो भवन्ति, 'जे चउनाणी ते आभिणिवोडियनाणी, मुयनाणी, ओहिनाणी, मणपज्जवनाणी' ये तु चतु निनस्ते आभिनिवोधिकज्ञानिनः, श्रुतज्ञानिनः, अवधिज्ञानिनः, मनःपर्यवज्ञानिनो भवन्ति । गौतमः पृच्छति- 'तस्स अलद्धियाणं भंते ! जीवा कि नाणी, अन्नाणी ?' हे भदन्त! तस्य अवधिज्ञानस्य अलब्धिका लन्धिका लब्धिरहिताः खल्लु जीवाः किं जानिनः, अज्ञानिनो वा भवन्ति ? भगवानाह-'गोयमा ! नाणी वि, अन्नाणी वि, गइया चउनाणी' कितनेक जीव तीन ज्ञानवाले होते हैं और कितनेक चार ज्ञानवाले होते हैं। जो तीन ज्ञानवाले होते हैं उनके मनःपर्यवज्ञान और केवलज्ञान नहीं होता है और जो चार ज्ञानवाले होते हैं उनको केवलज्ञान नहीं होता है. 'जे तिनाणी ते आभिणिबोहियनाणी, सुयनाणी, ओहिनाणी' यही बोत विज्ञानी होने में इस सूत्रपाठ द्वारा प्रकट की गई है। तथा 'जे चउनाणी ते आभिणिघोहियनाणी, सुयनाणी, ओहिनाणी, मणपज्जवनाणी' चार ज्ञानों से ज्ञानी होनेकी बात इस सूत्रपाठ द्वारा प्रकट की गई है। अब गौतम प्रभुसे ऐसा पूछते हैं 'तस्स अलद्धिया णं भंते ! जीवा किं नाणी अन्नाणी' हे भदन्त ! जो जीव अवधिज्ञानलब्धिवाले नहीं होते हैं वे क्या ज्ञानी होते हैं या अज्ञानी होते हैं उत्तरमें प्रभु कहते हैं'अत्थेगइया तिन्नाणी, अत्येगइया चउ नाणी' मा १ नए नानपारा मन કેટલાક જીવ ચાર જ્ઞાનવાળા હોય છે. જે ત્રણ જ્ઞાનવાળા હોય છે તેમનામાં મન:પર્યવજ્ઞાન અને કેવળજ્ઞાન હેતું નથી અને જે ચાર જ્ઞાનવાળા હોય છે તેમને કેવળજ્ઞાન डात नथी. तिन्नाणी ते अभिणिवोहियनाणी, सुयनाणी, ओहियनाणी, જે ત્રણ જ્ઞાનવાળા હોય છે તેઓ આભિનધિક જ્ઞાનશ્રતજ્ઞાન, અને અવધિજ્ઞાન એ ત્રણ ज्ञानपाडाय छे 'जे चउनाणी ते आभिणिवोहियनाणी, मुयनाणी ओहियनाणी, मणपज्जवनाणी' यार शानथा ज्ञानी जापानी पात ५२न सूत्रा४थी २५०८ याय प्रश्न :- 'तस्स अलद्धियाणं भते जीवा किं नाणी अभाणी पन्त ! २१ અવધિજ્ઞાન લબ્ધિવાળા નથી દેતાં તે જ્ઞાની હોય છે કે અજ્ઞાની હોય છે? ઉ. -
SR No.009316
Book TitleBhagwati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages811
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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