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________________ भगवती ४२० केचन त्रिज्ञानिनः, " अपि अवसेया, तेऽपिज्ञानिनो नो अज्ञानिनः, तत्रापि केचन द्विज्ञानिनः, केचन चतुर्ज्ञानिनो भवन्ति इति भावः । तम्स अलद्धिया विजहा आभिणिवोहियाणस्स अलद्धिया' तस्य श्रुतज्ञानस्य अलब्धिका अपि लब्धिरहिता अपि जीवा यथा आभिनिवोधिकज्ञानस्य अलब्धिकाः पूर्ववर्णितास्तथैव ज्ञानिनोऽपि, अज्ञानिनोऽपि ये ज्ञानिनस्ते नियमात् एकज्ञानिनः केवलज्ञानिनः, ये अज्ञानिनस्ते भजनया केचन - ज्ञानिनः केचन व्यज्ञानिनो भवन्ति इति भावः । गौतमः पृच्छति- 'ओहिनागलीया णं पुच्छा ?' हे भदन्त ! अवधिज्ञानलब्धिकाः खलु जीवाः किं ज्ञानिनः १ किंवा अज्ञानिनो भवन्ति ? इति पृच्छा प्रश्नः भगवानाह - 'गोयमा ! नाणी, नो अम्नाणी' हे गौतम ! अवधिज्ञानलब्धिमन्तः ज्ञानिनो Haन्ति, तो अज्ञानिनः, तत्रापि अत्येगइया तिनाणी, अत्येगइया चउनाणी' चाहिये. अज्ञानी नहीं, ज्ञानियों में कोई दो ज्ञानवाले कोड़ तीन ज्ञानवाले और कोई चार ज्ञानवाले होते हैं । ' तस्स अलद्विया वि जहा आभिणिवोहियनाणस्स अलडिया ' श्रुतज्ञानकी लब्धि से रहित जीव भी आमिनिवोधिकज्ञानलब्धि से रहित जीवोंकी तरह ही जानना चाहिये । अर्थात् इनमें ज्ञानी भी होते हैं और अज्ञानी भी होते हैं । जो ज्ञानी होते हैं वे नियमसे एक ज्ञान केवलज्ञान से ज्ञानी होते हैं और जो अज्ञानी होते हैं वे भजना से कितनेक दो अज्ञानवाले होते हैं, और कितनेक तीन अज्ञानवाले होते हैं । अय गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं 'ओहिना णलद्वियाणं पुच्छा' हे भदन्त ! अवधिज्ञान लब्धिक जीव क्या ज्ञानी होते हैं या अज्ञानी होते हैं ? इस प्रश्नका उत्तर देते हुए प्रभु कहते हैं- 'गोयमा' हे गौतम! 'नाणी, नो अन्नाणी' अवधिज्ञान लब्धिक जीव ज्ञानी ही होते हैं, अज्ञानी नहीं होते । ज्ञानीमें 'अत्थेगइया तिनाणी, अत्थे S हैं। यार ज्ञानवाणा होय . तस्म अलद्धियात्रि जहा आभिणिवेोहियनाणस्सअलद्धिया , શ્રુતજ્ઞાન લબ્ધી વગરના જીવને પણ અભિનીમેધિક જ્ઞાનલબ્ધિ રહિતના છવાની માફ્ક સમજવા, અર્થાત્ તેમનામા કેટલાક જ્ઞાની, કેટલાક અજ્ઞાની પણ હોય છે. જે જ્ઞાની હાય છે તે નિયમથી એક જ્ઞાન-કેવળજ્ઞાનવાળા હાય તે અને જે અજ્ઞાની હાય છે તેભજનાથી સ્કેટલે કે કેટલાક બે અજ્ઞાનવાળા અને કેટલાક ત્રણ અજ્ઞાનવાળા હાય છે. प्रश्न :- ओहिनाणलद्धियाण पुच्छा હે ભદન્ત ! અવધિજ્ઞાન લબ્ધિવાળા ८ , છવા જ્ઞાની હાય છે કે અજ્ઞાની? ઉ 'गोयमा' हे गौतम | 'नाणी नो अन्नाणी ' અવધિજ્ઞાન લબ્ધિવાળા જીવે જ્ઞાની જ હેાય છે, અજ્ઞાની હતા નથી. જ્ઞાનીએામાં --
SR No.009316
Book TitleBhagwati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages811
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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