SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 420
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४०६ भगवती सूत्रे गौतमः पृच्छति - 'नाणलद्धी णं भंते ! कडविहा पण्णत्ता ?" हे भदन्त ! ज्ञानलब्धिः खलु कतिविधा कियत्प्रकार | प्रज्ञप्ता ? भगवानाह 'गोयमो ! पंचविहा पण्णत्ता' हे गौतम ! ज्ञानलब्धिः पञ्चविधा प्रज्ञप्ता, 'तं जहा - आभिणिवोहियणाणलद्धी जाच केवलणाणलद्धी' तद्यथा - आभिनिवोधिकज्ञानलब्धिः मतिज्ञानलब्धिरित्यर्थः यावत् श्रुतज्ञानलब्धिः अवधिज्ञानलब्धिः, मनःपर्यव ज्ञानलब्धिः, केवलज्ञानलब्धिश्च । अथ ज्ञानलब्धेर्विपरीतामज्ञानलब्धिप्ररूपयितुं पृच्छति - 'अन्नाणलद्वीणं भंते ! कविहा पण्णत्ता ?" हे भदन्त ! अज्ञानलब्धिः खलु कतिविधा पज्ञप्ता ? भगवानाह - 'गोयमा ! तिविहा पण्णत्ता' हे गौतम ! क्षयोपशमके प्राप्त भावेन्द्रियका तथा एकेन्द्रियादि जाति नाम कर्मके उदयसे तथा पर्यासनामकर्मके उदयसे प्राप्त द्रव्येन्द्रियका लाभ होना अर्थात् द्रव्येन्द्रिय एवं भावेन्द्रियरूप इन्द्रियोंकी प्राप्ति होना इसका नाम इन्द्रियलब्धि है । अब गौतम प्रभुसे ऐमा पूछते हैं'नाणलद्धीणं भंते! कइ विहा पण्णत्ता' हे भदन्त ! ज्ञानलब्धि कितने प्रकार की कही गई है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं 'गोयमा ! पंचविहा पण्णत्ता' हे गौतम! ज्ञानलब्धि पाँच प्रकारकी कही गई है । 'तंजहा ' जैसे- आभिणिबोहिघनाणलद्धी, जाव केबलनाणलटी' आभिणिबोधिकज्ञान - मतिज्ञानलब्धि, श्रुतज्ञानलब्धि, अवधिज्ञानलब्धि, मनःपर्यवज्ञानलब्धि और केवलज्ञानलब्धि | अब गौतम इस ज्ञानलब्धिसे विपरीततावाली अज्ञानलब्धिके विषयमें प्रभुसे पूछते हैं- 'अन्नाणलद्वीणं भंते ! कविहा पण्णत्ता' हे भदन्त ! अज्ञानलब्धि कितनें प्रकारकी कही गई है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं 'गोयमा तिविहा पण्णत्ता' દ્રવ્યેન્દ્રિયનુ નામ લાભ છે. અર્થાત દ્રવ્યેન્દ્રિય અને ભાવેન્દ્રિય રૂપ ઇન્દ્રિયાની પ્રાપ્તી થવી तेनु नाम इन्द्रिय सम्धि छे, अश्न:- नाणलद्वीण भंते कचिहा पण्णत्ता ' ज्ञान सन्धि डेटला प्रभारनी है ? तेना उत्तरमा अनु छे 'गोयमा ' ' पंचविहा पण्णत्ता' हे गौतम! ज्ञान सन्धि पाय अहारनी छे. ते 'तंजहा ' ने 'आभिणिबोडियनाणलद्धी जात्र केवलनाणलद्धी ' અભિનિષે,ધિક જ્ઞાન મતિજ્ઞાન લબ્ધિ શ્રુતજ્ઞાન લબ્ધિ અવધિ જ્ઞાન લબ્ધિ મન પવજ્ઞાન લબ્ધિ અને કેવળ જ્ઞાન લબ્ધિ. હવે ગૌવત સ્વામી જ્ઞાન લબ્ધિથી વિપરીત સ્વરૂપવાળી અજ્ઞાન લબ્ધિના વિષયમા પ્રભુને छेछे' अन्नाणलड़ीं णं भंते कइविहा पण्णत्ता ' डे भगवन् ! अज्ञान सम्धि डेटला अारनी डेंटली छे. 'गोयमा ' तिचा पण्णत्ता' हे गौतम । अज्ञान अधि 6 ' - " -
SR No.009316
Book TitleBhagwati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages811
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy