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________________ प्रमेयचन्द्रिका टोका श. ८ उ. ब. ६ लब्धिस्वरूपनिरूपणम् ४०१ अज्ञानिनः ? गौतम ! जानिन, नो अज्ञानिन, नियमात् एकवानिन - केन्द्र ज्ञानिनः, तस्य अलब्धिकाः खलु पृच्छा ? गौतम ! ब्र. निनोऽपि अन्नानिनोऽपि के ज्ञानवर्णानि चत्वारि ज्ञानानि त्रीणि अनानानि भजनया । अज्ञानलव्धिकाः खल पृच्छा ? गौतम ! नो ज्ञानिनः, अज्ञानिनः त्रीणि भवानानि भजनया, भंते ! जीवा किं नाणी अन्नाणी) हे भदन्त ! जो जीव केवलज्ञानलब्धिवाले होते हैं वे क्या ज्ञानी होते हैं या अज्ञानी होते हैं ? (गोयमा) हे गौतम! (नाणी, नो अन्नाणी-नियमा एगनाणी केवलनाणी) केवल ज्ञानलब्धिवाले जीव ज्ञानी होते हैं, अज्ञानी नहीं होते । ज्ञानो होते पर भी वे केवल एक ज्ञानवाले ही होते हैं दो आदि ज्ञान वाले नहीं होते । एक ज्ञान में भी वे केवलज्ञान वाले हो होते है । (तस्स अलड़ियाणं पुच्छा) हे भदन्त ! जो जीव केवलज्ञान लब्धि से रहित होते हैं वे क्या ज्ञानी होता हैं या अज्ञानी होता है ? (गोमा) हे गौतम! (नाणी वि, अन्नाणी वि केवलनाणबजाई चत्तारि णाणाई तिनि अन्नाणाई भगाएं) केवल ज्ञान लब्धि से रहित जीव ज्ञानी भी होते हैं और अज्ञानी भी होते हैं । यदि वे ज्ञानी होते हैं तो केवल ज्ञानवर्ज चार ज्ञानवाले होते हैं और यदि अज्ञानी होते हैं तो तीन अज्ञानवाले होते हैं । ऐसे जो वे होते हैं सो नियम से नहीं होते हैं किन्तु भजना से ही होते हैं । (अम्नाणलड़ियाणं पुच्छा) हे भदन्त ! जो जीव अज्ञान लब्धिवाले " હોય છે. केवलनालडीयाणं मंते जीवा किं नाणी अन्नाणी ' હૈ ભગવાન 1 ने व ठेवणज्ञान सन्धिवाणा होय छे ते ज्ञानी होय से है गज्ञानी ? 'गोयमा' गौतम! 'नाणी नो अन्नाणी नियमा एगनाणी केवलनाणी ' ठेवण ज्ञान सचिवाणा જીવ જ્ઞાનીજ હેાય છે. અજ્ઞાની હાતા નથી અને તે કેવળ એક જ્ઞાનવાળાજ હાય છે મે આજ્ઞિાનવાળા હાતા નથી એક જ્ઞાનમા પણુ કેવળ જ્ઞાનવાળા જ હોય છ वस्त्र अलद्वियाणं पुच्छा' ने वणज्ञान सधियी दिन होय हे ते शु जानी होय हे हे अज्ञानी ? ' गोयमा ' हे गौतम | 'नाणी व अन्नाणी वि केवलनाणवज्जाई चत्तारिनाणाई तिन्नि अन्नाणाई मयणाए' ठेवण ज्ञान सचिवा જીવ જ્ઞાની પણ હાય છે અને અજ્ઞાની પણ હાય છે જે તે જ્ઞાની હોય છે તે તે કેવળ જ્ઞાનને છેડીને ચાર જ્ઞાનવાળા હોય છે અને જો અજ્ઞાની રાય તે ત્રણ અજ્ઞાનવાળ! હેય છે એવા તેએ નિયમથી દેતા નથી પરતુ ભજનાથી ડેાય છે अन्नाणलद्धि याणं पुच्छा' हे भगवन | ( ज्ञान सन्धिवाणा होय ते शुं ज्ञानी हे! छे है "
SR No.009316
Book TitleBhagwati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages811
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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