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________________ ४०० भगवतीसूत्रे एकके चतुर्ज्ञानिनः ये विज्ञानिनस्ते आभिनिवोधिकज्ञानि श्रुतज्ञानिनः, अवधिज्ञानिनः, मनः पर्यवज्ञानिन । तस्य अलब्धिकाः खलु पृच्छा ? गौतम ! ज्ञानिनोऽपि, अज्ञानिनोऽपि मनः पर्यवज्ञानवर्जीनि चत्वारि ज्ञानानि त्रीणि अज्ञानानि भजनया । केवलज्ञानलव्धिकाः खलु भदन्त ! जीवा किं ज्ञानिनः, हैं ? ( नाणी-नो अन्नाणी) हे गौतम! मनःपर्यवज्ञानलब्धिवाले जीव ज्ञानी होते हैं - अज्ञानी नहीं होते ! (अत्थेगइया तिन्नाणी, अत्थेगइया चडनाणी, जे तिनाणी ते आभिणिबोहियनाणी सुयनाणी मणपज्जवणाणी-जे चउनाणी ते आभिणिवोहियनाणी, सुयनाणी, ओहिनाणी, मणपज्जवनाणी) इनमें कितनेक तो तीन ज्ञानवाले होते हैं और कितनेक चार ज्ञानवाले होते हैं । जो तीन ज्ञान वाले होते हैं, वे अभिनिबोधिकज्ञान वाले श्रुतज्ञानवाले और पर्यवज्ञानवाले होते हैं और जो चार ज्ञानवाले होते हैं वे अभिनिबोधिकज्ञानवाले श्रुतज्ञानवाले. अवधिज्ञानवाले, और मनः पर्यवज्ञानवाले होते हैं । ( तस्स अलद्धियाणं पुच्छा - ) हे भदन्त ! जो मनःपर्यवज्ञानलब्धि से रहित होते हैं वे क्या ज्ञानी होते हैं या अज्ञानी होते हैं ? (गोमा) हे गौतम! मनः पर्यवज्ञान लब्धिसे रहित जीव ज्ञानी भी होते हैं और अज्ञानी भी होते हैं । (मणपज्जवणाणचजाहूं चत्तारिणाणाई, निनिअण्णाणाई भयणाए ) जो ज्ञानी होते हैं उनको मनः पर्यवज्ञान को छोडकर चार ज्ञान और अज्ञानीको तीन अज्ञान भजनासे होते हैं । (केवलनाणलब्धियांणं ज्ञानी होय छे? ठे ज्ञानी डेय छे ? 'नाणी नो अन्नाणी' हे गौतम! मनःपर्यवज्ञान सम्धिवाजा श्र्व ज्ञानी होय हे अज्ञानी होता नथी अत्थेगडया तिन्नाणी, अत्थेगडया चनाणी जे तिन्नाणी ते आभिणिवोहियनाणी, सुयनाणी, मगपज्जवनाणी जे चउनाणी ते आभिणिवोहियनाणी, सुयनाणी, ओहिनाणी, मणपज्जवनाणी' તેમાં કેટલાક ત્રણ જ્ઞાનવાળા હોય છે તેમને આભિનિએધિક જ્ઞાન, શ્રુતજ્ઞાન અને મનઃપવ જ્ઞાન છેડીને ચાર જ્ઞાનવાળાઓને આભિનિષેાધિક જ્ઞાન, શ્રુતજ્ઞાન,અવધિજ્ઞાનઅને મન પવ જ્ઞાન એ ચાર જ્ઞાન હૈાય છે तस्स अलद्धियाणं पुच्छा' हे लहन्त ने मनःपर्यव ज्ञान सम्धि विनाना होय ते शुं जानी होय छे अज्ञानी ? 'गोयमा ' हे गौतम! મનઃપવજ્ઞાન લબ્ધિ વગરના જીવ જ્ઞાની પણ હાય છે અને અજ્ઞાની પણ હોય છે. 'मणप्रज्जवनाणवज्जाई चत्तारि नाणाई तिन्नि अन्नाणाई भयणाए' थे ज्ञानी होय छे તેને મન પ ત્ર જ્ઞનને છેડીને ચાર જ્ઞાન અને અજ્ઞાનીને ત્રણ અજ્ઞાન ભજનાથી " 7 "
SR No.009316
Book TitleBhagwati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages811
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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