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________________ अमेयचन्द्रिका टीकाश. ८उ. २ मू. ५ ज्ञानभेदनिरूपणम् तिर्यग्योनिकानां जीवानामपि नियमतो हे ज्ञाने, द्वे अज्ञाने भवतः । गौतमः पृच्छति-'अपज्जत्तगाणं भंते ! मणुस्सा कि नाणी, अन्नाणी ? हे भदन्त ! अपर्याप्तकाः खलु मनुष्याः किं ज्ञानिनः, किं वा अज्ञानिनो भवन्ति ? भगवानाह'तिन्नि नाणाई भयणाए, दो अन्नाणाइ नियमा' हे गौतम ! अपर्याप्तकमनुष्याणां त्रीणि ज्ञानानि भजनया भवन्ति, द्वे अज्ञाने नियमात् भवतः, तथा च सम्यग्दृशाम् अपर्याप्तकमनुष्याणां तीर्थरचत अवधिज्ञानसद्भावे त्रीणि ज्ञानानि भवन्ति, तदभावे द्वे ज्ञाने, भवतः, मिथ्यादृशान्तु द्वे एवाज्ञाने नियमतो भवतस्तेषामपर्याप्तकत्वे विभङ्गज्ञानस्यासंभवात् । 'वाणमंतरा जहा नेरइया' अपअपर्याप्तक तेइन्द्रिय, अपर्याप्तक चौइन्द्रिय और अपर्याप्तक पंचेन्द्रिय तियंग्योनिक जीवोंके भी नियमसे दोज्ञान और दोअज्ञान होते हैं । अब गौतमम्वामी प्रभुसे एसा पूछ रहे हैं कि 'अपज्जत्तगाणं भंते ! मणुस्सा किनाणी अन्नाणी' हे भदन्त ! जो मनुष्य अपर्याप्तक होते हैं वे क्या ज्ञानी होते हैं या अज्ञानी होते हैं ? इसके उत्तरमें प्रभु कहते हैं 'तिन्नि नाणाई भयणाए, दो अन्नाणाई नियमा' हे गौतम! अपर्याप्तक मनुष्योंमें तीनज्ञान तो भजनासे होते हैं पर दो अज्ञान नियमसे होते हैं। तथाच-जो अपर्याप्तक मनुष्य सम्यग्दृष्टि होते हैं वे तीर्थङ्करकी तरह अवधिज्ञानके सद्भावमें तीन ज्ञानवाले होते हैं, और अवधिज्ञानके असदभावमें दोज्ञानवाले होते हैं । और जो अपर्याप्त मिथ्यादृष्टि मनुष्य होते हैं उनके उस अवस्थामें विभंगज्ञान नहीं होनेके कारण नियमसे दोअज्ञान ही होते हैं । ચાવતુ- અપર્યાપ્તક તે ઇન્દ્રિય, અપર્યાપ્તક ઉરીદિય અને અપર્યાપ્તક પચેકિય તિર્થ એ ચોનિક જીને પણ નિયમથી બે જ્ઞાન અને બે અજ્ઞાન હોય છે. કારણકે તેમાં પણ साने गुY४२थान३५ सभ्य समाप मने सहमा होय छे 'अपज्जत्तगाणं भंते मणुस्सा कि नाणी अन्नाणी' है भगवन् ! रे मनुष्य मर्यात होय छे शानी होय छ , अज्ञानी डोय छ ? 8 'तिन्नि नाणाई भयणाए दो अन्नाणाई नियमा' गौतम ! २५ मनुष्योमा त्र ज्ञान त सनाथी होय छे मन में જ્ઞાન નિયમથી હોય છે તેવી જ રીતે જે અપર્યાપ્તક મનુષ્યસમ્યગૃષ્ટિ હોય છે. તે તિર્થ કરની માફક અવધિજ્ઞાનના અદૂભાવમાં ત્રણજ્ઞાનવાળા અને અવધિજ્ઞાનના અભાવમાં બે જ્ઞાનવાળા હોય છે. અને અપર્યાપ્તક મનુષ્ય મિથ્યાદ્રષ્ટિ હોય છે તેઓને તે અવસ્થામાં विमान नवाना २२ नियमथा में मजान खोप छ 'वागमंतरा जहा नेरडया'
SR No.009316
Book TitleBhagwati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages811
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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