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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श.८ उ.२ मृ.५ ज्ञानभेदनिरूपणम् ३६३ किं ज्ञानिनः, अज्ञानिनः ? यथासिद्धाः ५॥ निरयभवस्थाः खलु भदन्त ! जीवाः किं ज्ञानिनः, अज्ञानिनः ? यथो निरयगतिकाः, तिर्यग्भवस्थाः खलु भदन्त ! जीवाः किं ज्ञानिनः, अज्ञानिनः ? त्रीणि ज्ञानानि, त्रीणि अज्ञानानि भजनया । मनुष्यभवम्थाः खलु भन्दत ! जीवाः किं ज्ञानिनः, अज्ञानिन: ? यथा सकायिकाः। देवभवस्थाः खलु भदन्त ! यथा निरयभवस्थाः, अभवस्थाः यथा सिद्धाः ६ । भवसिद्धिकाः खलु भदन्त ! जीवाः किं ज्ञानिनः, अज्ञानिनः ? हैं। (निरयभवत्थाणं भंते ! जीवा किं नाणी अन्नाणी) हे भदन्त ! निरयभवस्थ जीव क्या ज्ञानी होते हैं या अज्ञानी होते हैं ? (जहा निरयगड्या) हे गौतम ! निग्यभवस्थजीव नैरयिकगतिककी तरह जानना चाहिये। (तिरियभवत्था णं भंते ! जीवा किं नाणी अन्नाणी) हे भदन्त ! तिर्यग भवस्थ जीव क्या ज्ञानी होते हैं या अज्ञानी होते हैं ? (तिन्नि नाणा तिन्नि अन्नाणा भयणाए) हे गौतम ! इनको तीनज्ञान और तीनअज्ञान भजनासे होते हैं। (मणुस्सभवत्था णं भंते ! जीवा किं नाणी अन्नाणी) हे भदन्त ! मनुष्यभवस्थ जीव क्या ज्ञानी होते हैं ? अथवा अज्ञानी होते हैं ? (जहा सकाइया) हे गौतम ! इन्हें सकायिक जीवोंकी तरहसे जानना चाहिये (देवभवत्थाणं भंते !) हे भदन्त ! देवभवस्थ जीव ज्ञानी होते हैं या अज्ञानी होते हैं ( जहा निरयभवत्था, अभवत्था जहा सिद्धा) हे गौतम ! देवभवस्थ जीवोंको निरयभवस्थ जीवोंकी तरह जानना चाहिये । तथा अभवस्थजीवोंको सिद्धोंकी तरह जानना चाहिये । (भवसिद्धियाणं भंते ! जीवा किं नाणी, अन्नाणी ?) हे भदन्त ! भवशानी होय छे निरयभवत्थाणं भंते किं नाणी अन्नाणी, सावन । निश्यलवस्थ ७५ जानी जाय छे , अज्ञानी ? 'जहा निरयगडया' हे गौतम ! तन्मान २यि४ ०वानी मा समनपा निरयभवत्थाणं भंते जीवा किं नाणी अन्नाणी' हे भगवन ! तिय अवश्य ७ जानी हाय छ है मज्ञानी डाय छ' तिन्नि नाणा तिन्नि अन्नाणा भयणाए' हे गौतम ! माने न जान भने त्र २मज्ञान सनाथी हाय छ 'मणुस्सभवत्थाणं भंते जीवा कि नाणी अन्नाणी' हे भगवन । मनुष्यभरथ पशुशानी हय मचानी ? 'जहा सकाइया, गौतम ! तमाने साय: वानी भा४ सभ७ वा. 'देवभवत्थाणं भते' हे सगवन । विसवश्य ज्ञानी डाय छे 3 मज्ञानी ? 'जहा निरयभवत्था, अभवत्था जहा सिद्धा' हे गौतम! देव मरथ वन नि२५ अवस्य वानी भाः सम सेवा, तया समवस्य वान सिद्वानी भा६४ समायेचा 'भवसिद्धियाणं भंते जीवा कि
SR No.009316
Book TitleBhagwati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages811
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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