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________________ - - ३५८ भगवतीरने याणां वे ज्ञाने, द्वे अज्ञाने नियमात् । पञ्चेन्द्रिया यथा सेन्द्रियाः। अनिन्द्रियाः खलु भदन्त ! जीवाः किं ज्ञानिनः, अज्ञानिनः ? यथा सिद्धाः २। सकायिकाः खलु भदन्त ! जीवाः किं ज्ञानिनः अज्ञानिनः ? गौतम ! पञ्च ज्ञानानि, त्रीणि अज्ञानानि भजनया। पृथिवीकायिकाः यावत् वनस्पतिकायिकाः नो ज्ञानिनः, अज्ञानिनः, नियमात् द्वन्यज्ञानिनः, तद्यथा-मत्यज्ञानिनश्च, श्रुताज्ञानिनश्च । जसकायिकाः यथा जानना चाहिये । (वेइंदिय, तेइंदिय, चरिंदियाणं दो नाणा, दो अनाणा नियमा) वेन्द्रिय, तेइन्द्रिय और चौइन्द्रिय इन जीवोंके दोज्ञान और दोअज्ञान नियमसे होते हैं। (पंचिंदिया जहा सइंदिया) पंचेन्द्रिय जीव सेन्द्रियजीवोंकी तरहसे जानना चाहिये । (अप्रिंदियाणं भंते ! जीवा किं नाणी अनाणी) हे भदन्त ! अनिन्द्रिय जीव-इन्द्रिय रहित जीव क्या ज्ञानी होते हैं या अज्ञानी होते हैं ? (जहा सिद्धा )सिद्धजोवोंकी तरह इनमें ज्ञानी होनेका कथन जानना चाहिये । (सकाइयाणं भंते ! जीवा किं नाणी अन्नाणी) हे भदन्त ! सकायिक (कायावाले) जीव ज्ञानी होते हैं या अज्ञानी होते हैं । (गोयमा) हे गौतम ! (पंच नाणाई तिमि अन्नाणाई भयणाए) सकायिकनीवोमें भजनासे पांच ज्ञान और तीन अज्ञान होते हैं। (पुढवीकाइया जाव वणस्सइकाइया णो नाणी, अनाणी नियमा दुअनाणी) पृथिवीकायिक यावत् वनस्पतिकायिकजीव ज्ञानी नहीं होते हैं, किन्तु अज्ञानी होते हैं और इनमें नियमसे मति अज्ञान हे गौतम मेन्द्रिय वापि४ ®वाना समान 'बेइंदिय, ते इंदिय, चउरिदियाणं दोनाणा, दो अन्नाणा नियमाये ।न्द्रिय,-तेन्द्रिय (नय दीया) भने यन्द्रिय मे जवाने में जान भने में अज्ञान नियमथी ३५ छे 'पंचिदिया जहा सइंदिया' पश्यन्द्रिय सपने मेन्द्रियवाणा वानी भा६४ सभा 'अणिदियाणं भंते ! जीवा किं नाणी अन्नाणी' हे भगवान! भनिन्द्रिय-न्द्रिय विनाना ७५ शानी होय छे 3 मवानी हाय छ ? "जहा सिद्धा' सिद्ध वानी भा४ तेमाने जानी हावार्नु समj. 'सकाइयाणं भंते जीवा किं नाणी अनाणी' है -ता सायि84 ज्ञानी डेय, अज्ञानी ? 'गोयमा' हे गौतम! 'पंचनाणाई तिमि अन्नाणाई भयणाए' स1ि:00ोमा मनायी पांय जान मने त मज्ञान होय छे. 'पुढवीकाइया जाच वणस्सइकाइया, नो नाणी अन्नाणी नियमा दुअनाणी' પૃથ્વીકાયિકજીવ-ચાવત-વનસ્પતિકાયિકછવ જ્ઞાની હતા નથી કિન્તુ અજ્ઞાની હોય છે અને તેમનામાં નિયમથી મતિજ્ઞાન, અને કુતઅજ્ઞાન એ બે અજ્ઞાન હોય છે. એ જ વાત
SR No.009316
Book TitleBhagwati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages811
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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