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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका ग. ८ उ. २ . ६ ज्ञानभेदनिरूपणम् ३५७ मात् । देवगतिकाः यथा निरयगतिकाः । सिद्धगतिकाः खलु भदन्त ! यथा सिद्धाः १ सेन्द्रियाः खलु भदन्त ! जीवाः किं ज्ञानिनः, अज्ञानिनः ? गौतम 1 चत्वारि ज्ञानानि त्रीणि अज्ञानानि भजनया, एकेन्द्रियाः खलु भदन्त ! जीवाः किं ज्ञानिनः, अज्ञानिनः ? यथा पृथिवीकायिकाः, द्वीन्द्रिय-त्रीन्द्रिय- चतुरिन्द्रिहे भदन्त ! मनुष्यगतिकजीव मनुष्यगति में रहे हुए जीव क्या ज्ञानी होते हैं या अज्ञानी होते हैं ? ( गोयमा) हे गौतम ! (तिनि नाणाई भयणा, दो अन्नाणाई नियमा) मनुष्यगतिक जीव ज्ञानी भी होते हैं और अज्ञानी भी होते हैं । ज्ञानियों में तीनज्ञान भजनासे होते हैं और अज्ञानियों में दो अज्ञान नियमसे होते हैं । (देवगइया जहा निरयगइया) देवगतिक जीव निरयगतिक के समान जानना चाहिये । (सिद्धगइयाणं भंते !) हे भदन्त ! सिद्धगतिक जीव क्या ज्ञानी होते हैं या अज्ञानी होते हैं ? ( जहा सिद्धा) हे गौनम ! सिद्धिगतिक जीव सिद्धजीवोंकी तरहसे होते हैं । अर्थात् ज्ञानी होते हैं । ( सइदियाणं भंते! जीवा किं नाणी अन्नाणी) हे भदन्त ! सेन्द्रिय जीव क्या ज्ञानी होते हैं या अज्ञानी होते हैं ? ( गोयमा) हे गौतम ! ( चत्तारि नाणाई तिन्नि अन्नाणाई' भयणाए ) उनके चार ज्ञान भजनासे होते हैं और तीनअज्ञान भजनासे होते हैं । (एगिंद्रियाणं भंते ! जीवा किं नाणी अन्नाणी ?) हे भदन्त एकेन्द्रिय जीव क्या ज्ञानी होते हैं या अज्ञानी होते हैं ? ( जहा पुढविकाइया) हे गौतम एकेन्द्रिय जीव पृथिवीकायिक जीवोंकी तरह से અને એ 'અજ્ઞ નાય मस्सगइयाणं मते ! जीवा किं नाणी अन्नाणी ' હે ભગવન્ ! મનુષ્યગતિક જીવ-મનુષ્યગતિમા રહેતા જીવ જ્ઞાની હોય છે કે અજ્ઞાની डोय छे ? 'गोयमा' हे गौतम! 'तिन्नि नाणाई भयणाए, दो अन्नाणाई नियमा' મનુષ્યગતિમાં રહેતા જીવ નાની પણ હાય છે અને અજ્ઞાની પણ જ્ઞાનીઓમા ત્રણુ ज्ञान लन्दनाथी होय छे अने अज्ञानीशाम मे अज्ञान नियमयी होय छे. 'देवगइया जहा निरयगइया' देवगतिना कब नैरपिङ्गतिना જીવ પ્રમાણે 'सिद्धगइयाणं भंते' हे भगवन् सिद्धगविज्ञानी हाय छे अज्ञानी? 'जहासिद्धा' ते सिद्धलोनी समान होय हे अर्थात - ज्ञानी न होय े 'सइंदियाणं भंते जीवा किं नाणी अम्भाणी' हे भगवन् । इन्द्रियवाजा को ज्ञानी होय हे अज्ञानी होय छे? 'गोयमा' हे गौतम! ' चत्तारि नाणाई, तिनि अन्नाणाई भयणाए ' भन्नाथी तेभना यार ज्ञान भने त्र ज्ञान होय 'एगिंदियाणं भते जीवा किं नाणी अम्नाणी' हे भगवन! थोडेन्द्रियव ज्ञानी हाय है रानी ? 'जहा पुढविक्काइया' समनवा 6
SR No.009316
Book TitleBhagwati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages811
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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