SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 355
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श.८ उ. २ मृ. ५ ज्ञानभेदनिरूपणम् ३४१ तेईदिय चउरिंदिया त्रि' एवं हीन्द्रियवदेव त्रीन्द्रियाचतुरिन्द्रिया अपि नियमात् द्विज्ञानिनः, द्वयज्ञानिनथ बोध्या: मतिज्ञानिनः श्रुतज्ञानिनथ, मत्यज्ञानिनः श्रताज्ञानिनश्चेति भावः । गौतमः पृच्छति- ' पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा' हे भदन्त ! पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिकाःखलु पृच्छा, तथाच पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकाः किम् ज्ञानिनः ? अज्ञानिनो वा भवन्ति ? भगवानाह - 'गोयमा ! नाणी वि, अन्नाणी त्रि' हे गौतम! पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिकाः ज्ञानिनोऽपि, अज्ञानिनोऽपि भवन्ति, 'जे नाणी ते अत्येगइया दुन्नाणी, अत्थेगया तिन्नाणी, एवं तिम्नि नाणाणि तिन्नि अन्नाणाणि य भयणाए' तत्र ये ज्ञानिनः पञ्चन्द्रिय तिर्यग्योनिकाः ते अस्त्येकके केचन द्विज्ञानिनः, अस्त्येकके - केचन त्रिज्ञानिनः, मतिश्रुतज्ञानिनः, मतिश्रुताऽवधिज्ञानिनश्चेत्यर्थः तदुपस ६वि' द्वीन्द्रिय जीवके जैसे ही तेइन्द्रिय और चौइन्द्रिय जीव भी नियम से दोज्ञानवाले और दो अज्ञानवाले होते हैं दो ज्ञानवालोंमें मतिज्ञानी और श्रुतज्ञानी होते हैं और दो अज्ञानियोंमें मत्यज्ञानी और श्रुताज्ञान होते हैं । गौतमस्वामी पूछते हैं 'पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा' हे भदन्त ! जो पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिके जीव हैं वे क्या ज्ञानी होते हैं या अज्ञानी होते हैं ? उत्तरमें प्रभु कहते हैं 'गोयमा' हे गौतम ! ' नाणी वि, अन्नाणी चि, पंचेन्द्रियतिर्यंचजीव ज्ञानी भी होते हैं और अज्ञानी भी होते हैं । 'जे नाणी ते अस्थेगइया दुन्नाणी अत्थेगइया तिन्नाणी एवं तिन्नि नाणानि, तिन्नि अन्नाणाणि य भयपाए' जो ज्ञानी होते हैं वे कितनेक दो ज्ञानवाले होते हैं, कितनेक तीन ज्ञानवाले होते हैं इस तरह दो तीन ज्ञानवाले होनेकी पंचेन्द्रिय श्रुतमज्ञानवाणा होय हे ' एवं इंद्रिय चउरइ दियावि' द्विन्द्रियवना नेवा તન્દ્રિય અને ચતુરિન્દ્રિય જીવા પણ એ જ્ઞાન અને બે અજ્ઞાનવાળા હોય છે. એ જ્ઞાન તે મતિજ્ઞાન અને શ્રુતજ્ઞાન અને બે અજ્ઞાન તે મત્યજ્ઞાની અને શ્રુતઅજ્ઞાની હોય છે 'पंचिदिय तिरिक्खजोणियाणं पुच्छा' हे भगवन ! पथेन्द्रिय तिर्यय योनीवाजा જીવ જ્ઞાની હોય છે કે અજ્ઞાની ? 6 - 'गोयमा' हे गौतम! 'नाणी व अन्नाणी वि' ते ज्ञानी पायु होप छे मने अज्ञानी या होय छे 'जे नाणी ते अत्थेगइया दुन्नाणी, अत्येगइया तिनाणी एवं तिन्नि नाणाणि, विन्नि अन्नाणाणि य भयणाए' तेमां डेंटला मे ज्ञानवाणा होय छे भने डेटला भए ज्ञानवाणा होय छे એ જ રીતે એ અને ત્રણ જ્ઞાનવાળા હેાવાની અને બે અને ત્રણ અજ્ઞાનવાળા હૈાવાની પચેન્દ્રિય તિય ચ ચેનીમાં ભજના સમજવી એ જ્ઞાનીયામા મતીજ્ઞાની અને શ્રુતજ્ઞાની, Y
SR No.009316
Book TitleBhagwati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages811
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy