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________________ पमेयचन्द्रिका टीका श.८ उ.२ म.१ आशीविषस्वरूपनिरूपणम् २७३ कर्माशीविषः, किं संमूछिममनुष्यकर्माशीविषः ? गर्भव्युत्क्रान्तिकमनुष्यकर्माशीविषः ? एवं यथा वैक्रियशरीरं यावत् - एप्तिकसंख्येयवर्षायुककर्मभूमिगतगर्भव्युत्क्रान्तिकमनुष्यकर्माशीविषः, नो अपर्याप्त योवत् - कर्माशीविषः ॥१०॥ है गौतम ! शरीर के प्रकरणमें वैक्रियका कथन करते हुए आचार्य ने जिस तरहसे जीव भेद कहा है, उसी प्रकारसे यावत् पर्याप्त संख्यात वर्ष की आयुवाले गर्भज पंचेन्द्रिययिंग्योनिक जीव जो कि बर्गभूमिमें उत्पन्नहुए हैं काशीविष हैं. अपर्याप्त असंख्यातवर्षकी आयुवाले यावत् काशीविष नहीं हैं । (जइ मणुस्सकरलासीविसे, किं संलुच्छिलमणुस्तकम्मासीविसे) हे भदन्त ' मनुष्य कर्माशीविष है, तो क्या संमूछिम मनुष्यकर्माशीविष है ? या (गलवदकंतियमणुस्सा कम्मासीविसे) गर्भजमनुष्यकर्माशीविष हैं ? (गोयमा) हे गौतम ! (गो समुच्छिममणुस्स कम्मासीविसे, गमवक्कंतियमणुन कम्मालीविसे एव जहा वेउन्वियमरीरं जाव पज्जत्ता संखेन्जवासाउयकाल भूमग गम्भवक्कंतियमणुस्स कम्मासीविसे, णो अपजत्त जाच कल्मासीविसे) संमूच्छिम मनुष्यकर्माशीविष नहीं हैं, गर्भजमनुष्यका शीविष है जैसा वैक्रियशरीरका कथन करते हुए आचार्य ने जीव भेद कहा है उसी तरहसे यावत् पर्याप्त संख्यातवर्षकी आयुवाले શરીરના પ્રકરણમાં વૈકિયનું કથન કરતાં આચાર્યો જેવી રીતે જીવોના ભેદ કહ્યા છે, તેવી રીતે પર્યાપ્ત સ ખ્યાત વર્ષની આયુષ્યવાળા કર્મજ, ગર્ભજ પ ચેન્દ્રિય તિર્યક્ર ની જીવ કે જે કર્મભૂમિમાં ઉત્પન્ન થયા છે તે કર્મશીવિષ છે કે અપર્યાપ્ત અસ ખ્યાત વર્ષની मायुष्यात यावत् - शिविष नथी. "जइ मणुस्स कम्मासीविसे किं संमच्छिममणुस्स कम्मासीविसे' लगवान् ने मनुष्य शीविष छे तो सभूछिभ मनुष्य माशीविष छ ? : 'गम्भवक्कंतिय मणस कम्मासीविसे' गम मनुष्य ४ाशीविष छ ? 'गोयमा' गौतम ! णो सम्मुच्छिममणुस्स कम्मासीविसे, गम्भवक्कंतिय मणुस्स कम्मासीविसे एवं जहा वेउब्वियसरीरं जाव पज्जत्ता संखेज्जवासाउय कम्म भूमग गम्भवक्कंतिय मणुस्स कम्मासीविसे णो अपज्जत्त जाव कम्मासीविसे ' संभूमि मनुष्य ४ाशीविष नथी होता मनुष्य કમશીવિષ હોય છે જેવી રીતે વૈક્રિય શરીરના કથન કરતાં આચાર્યો જીવોના ભેદ કહ્યા છે તેજ રીતે વાવત્ – પર્યાપ્ત સંખ્યાત વર્ષની આયુષ્યવાળા, ગર્ભજ મનુષ્ય કે જે
SR No.009316
Book TitleBhagwati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages811
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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