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________________ ・ラ प्रमेयचन्द्रिका टीका श.८ उ.१ मृ.२१ सूक्ष्मपृथ्वी काय स्वरूपनिरूपणम् २१९ परिणते वा वचःप्रयोगपरिणते वा, कायप्रयोगपरिणते वा भवतः, ' अहवेगे मणप्पओगपरिणए, एगे वयप्पओगपरिणए' अथवा प्रयोगपरिणतद्रव्ययोर्मध्ये एकं मनःप्रयोगपरिणत वा, एकं वचःप्रयोगपरिणतं वा भवति, 'अवेगे मणप्पओगपरिणए, एगे कायप्प ओग परिणए' अथवा एक मनःप्रयोगपरिणतम्, एक कायप्रयोगपरिणत भवति, 'अहवेगे वयप्पओगपरिणए, एगे कायप्पओगपरिणए' अथवा एक वचःप्रयोग परिणतम्, एक कायप्रयोगपरिणत भवति, 'गौतमः पृच्छति - जड़मणपओगओगरिणया किं सच्चमणप्पओगपरिणया, मोसमणप्पओगपरिणया, सच्चा' मणप्पओगपरिणया, वप्पओगपरिणया, कायप्पओगपरिणया, वा' हे गौतम ! प्रयोगपरिणत वे दो द्रव्य मनःप्रयोगपरिणत भी होते हैं, वचनप्रयोगपरिणत भी होते हैं, कायप्रयोगपरिणत भी होते हैं ' अहवेगे मणप्पओगपरिणए एगे वयप्पओगपरिणए' अथवा प्रयोगपरिणत दो द्रव्यों के बीच में एकद्रव्य मनःप्रयेोगपरिणत भी होता है, दूसरा द्रव्य वचनमयेोगपरिणत भी होता है, 'अहवेगे मणप्पओगपरि गए, एगे कायप्पओगपरिणए' अथवा कोई एक द्रव्य मनःप्रयोगपरिणत होता है और कोई दूसरा द्रव्य कायप्रयोगपरिणत होता है । ' अहवेगे वयपओगपरिणए, एगे काय ओगपरिणए' अथवा कोई एक द्रव्य वचनप्रयोगपरिणत होता है और कोई एक दूसरा द्रव्य कायप्रयोगपरिणत होता है । अब गौतमस्वामी प्रभुसे ऐसा पूछते हैं 'जह मणप्प ओगपरिणाया, कि सचमणप्पओगपरिणया, मोसमणप्प ओगपरिणया' हे भदन्त ! जो द्रव्यमनः प्रयोगपरिणत होते हैं, वे क्या सत्यमनः उत्तर- ( मणप्पओगपरिणया, बडप्पओगपरिणया, कायप्पओगपरिणया वा) હે ગૌતમ પ્રયાગપરિણત તે એ દ્રવ્ય સનઃપ્રયાગપરિણત પણ હાય છે, અને વચનપ્રયાગपरिवृत पाणु होय छे, डायप्रयोगपरित पशु होय . ( अहवेगे मणप्पओगपरिणए, एगे वयप्पगपरिणए) अथवा प्रयोगपरित्त मे द्रव्योमा ४ द्रव्य मनःप्रयोगपरियुत होय छे, भने जीन द्रव्य वयनप्रयोगपरित पशु छे. ( अहवेगे मणप्पओगपरिणए एगे काय ओगपरिणए) अथवा ४ मे४ द्रव्य मनःप्रयोगपरित होय छे भने भीन्नु, द्रव्य वायप्रयोगयरत होय छे. ( अहवेगे वयप्पओगपरिणए, एगे कायप्पओगपरिणए) अथवा अ द्रव्य वयःप्रयोगपति होय छे भने अर्थ मेड जीलु द्रव्य કાયપ્રયાગપરિણત હોય છે प्रश्न- (जइ मणप्पओगपरिणया- किं सच्चमणप्पओगपरिणया मोसमणप्पओगपरिणय़ा) हे भगवन ने द्रव्य भनःप्रयोगयरित होय हे ते शं सत्यभनप्रयोग
SR No.009316
Book TitleBhagwati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages811
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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