SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 232
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ . . . २१८ . ... भगवतीसो वा, मिश्रपरिणते वा, विस्रसापरिणते वा भवतः, 'अहवा एगे पओगपरिणए, एगे मीसापरिणए ४, अथवा तत्र द्वयोमध्ये एकं द्रव्यं प्रयोगपरिणतम्, एकं च मिश्रपरिणत भवति, 'अहवा एगे पओगरिणए, एगे वीससापरिणए ५, अथका एक द्रव्यं प्रयोगपरिणतं भवति, एकं च विस्त्रसापरिणत भवति, 'अहवा एगे मीसापरिणए, एगे वीससापरिणए, एवं ६, अथवा एकं द्रव्यं मिश्रपरिणतं भवति, एक विससापरिणतम् , इत्येवं पड् भेदा भवन्ति । गौतमःपृच्छति-'जड पोगपरिणया कि मणप्पओगपरिणया, वइप्पओगपरिणया, कायप्पओगपरिणया?' हे भदन्त ! यदि वे द्रव्ये प्रयोगपरिणते, ते किं मनःप्रयोगपरिण ने, वचःप्रयोगपरिणते, कायप्रयोगपरिणते भवतः ? भगवानाह-'गोयमा ! मणप्पओगपरिणया, बडप्पओगपरिणया, कायप्पओगपरिणया वा, हे गौतम! प्रयोगपरिणते द्रव्ये मनःपयोगपरिणत भी होते हैं 'अहवा एगे पओगपरिणए, एगे सीसापरिणए४' अथवा एक द्रव्य प्रयोगपरिणत होता है दुसरा द्रव्यमिश्रपरिणत होता है । 'अवेगे पओगपरिणए, एगे वोलसापरिणए ५' अथवा एकद्रव्य प्रयोगपरिणत होता है, दूसरा द्रव्य विस्रसापरिणत होता है । 'अहवा एगे भीसा परिणए, एगे वीससापरिणए६' अथवा एकद्रव्य मिश्रपरिणत होता है और दूसरा द्रव्य विस्रसापरिणत होता है । इस तरहसे ये ६ भेद होते हैं । अब गौतमप्रभुसे पूछते हैं 'जइ पओगपरिणया कि मणप्पोगपरिणया, वइपओगपरिणया, कायप्पओगपरिणया' हे भदन्त ! जो वे दो द्रव्य प्रयोगपरिणत होते हैं सो क्या वे मनःप्रयोगपरिणत होते हैं ? या वचनप्रयोगपरिणत होते हैं ? या कायप्रयोगपरिणत होते हैं ? इसके उत्तरमें प्रभु कहते हैं भने विखापरिणत भए खाय छे. अहवा एगे पओगपरिणए एगे मीसापरिणए४) અથવા એક દ્રવ્યોગપરિણત હોય છે અને બીજુ દ્રવ્ય મિશ્રપરિણત હોય છે. (अहवेगे पओगपरिणए, एगे वीससा परिणए ५) Aथवा मे ६०यप्रयेा परिणत डाय छ. भाद्रव्य वारसा परिणत होय छे ( अहवा एगे मीसापरिणए, एगे वोससापरिणए ६) मया मे द्रव्य मिश्रपरिणत हाय छ भने भी द्रव्य વિસા પરિણત હોય છે. આ રીતે છ ભેદ થાય છે ___प्रश्न- (जइ पओगपरिणया कि मणप्पओगपरिणया, वइप्पओगपरिणया, कायप्पओगपरिणया) हे भगवन नेतन्य प्रयोगपरिणत हाय त शुभना: પ્રયોગપરિણુત હેય છે? કે વચનપ્રયોગપરિણત હોય છે? અગર કાયપ્રોગપરિણત હોય છે?
SR No.009316
Book TitleBhagwati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages811
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy