SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 227
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श.८ उ. १ सू०२१ सूक्ष्मपृथ्वीकायस्वरूपनिरूपणम् २१३ यदि प्रयोगपरिणते किम् मनःप्रयोगपरिणते, वचःप्रयोगपरिणते, कायप्रयोग परिणते ? गौतम ! मनःप्रयोगपरिणते वा१, वचःप्रयोगपरिणते वार, कायप्रयोगपरिणते वा३,अथवा एकं मनःप्रयोगपरिणतं वा,एकं वचःप्रयोगपरिणतं वा४,अथवा एक मनःप्रयोगपरिणतम्, एकं कायप्रयोगपरिणतम्५,अथवा एकं वचःप्रयोगपरिणतम्, एकं कायप्रयोगपरिणतस्६। ये मनःप्रयोगपरिणते किं सत्यमनःप्रयोगहै। अथवा एकमिश्रपरिणत होता है और एकविस्रसापरिणत होता है । (जइ पओगपरिणया किं मणप्पओगपरिणया, वइप्पओगपरिणया ) हे भदन्त ! यदि वे दो द्रव्य प्रयोगपरिणत होते हैं, तो क्या वे मनःप्रयोग परिणत होते हैं ? या वचनप्रयोगपरिणत होते हैं(कायप्पओगपरिणया) कायप्रयोगपरिणत होते हैं ? (गोयमा) हे गौतम ! (मणप्पओग०वहप्पओग, कायप्पओगपरिणया वा ) वे मनःपयोगपरिणत भी होते हैं। वचनप्रयोगपरिणत भी होते हैं। कायप्रयोगपरिणत भी होते हैं। (अहवेगे मणप्पओगपरिणए, एगे वइप्पओगपरिणेए, अहवेगे मणप्पओगपरिणए, एगे कायप्पओगपरिणए, अहवेगे वयप्पओगपरिणए, एगे कायप्पओगपरिणए) अथवा एकद्रव्यमनःप्रयोगपरिणत होता है, एकद्रव्यवचनप्रयोगपरिणत होता है, अथवा एकद्रव्यमनःप्रयोगपरिणत होता है, एक कायप्रयोगपरिणत होता है । अथवा एकद्रव्य वचनप्रयोगपरिणत होता है, एक कायप्रयोगपरिणत होता है । (जइ मणप्पभयवा से मिश्र परिशत सय छ भने ४ वाचसापरिणत होय छ जडपओगपरिणया कि मणप्पओगपरिणया वइप्पओगपरिणया) हे मान्ने त द्रव्य પ્રયોગ પરિણત હોય છે તે શુ ? તે મનપ્રયોગ પરિણત હોય છે કે વચનપ્રયોગ परिणत राय छ ? मग२ ( कायप्पओगपरिणया) शरी२प्रयोग परिणत होय छ ? उत्तर- 'गोयमा!' गौतम ! (मणप्पओग० वइप्पओग० कायप्पओग० परिणया वा ) त मनप्रयो। परिणत ५ जाय छे क्यनप्रयोग परिणत ५ डाय छ भने (शाNN४) यया परिणत पात्र होय छे. (अहवेगे मणप्पओगपरिणए, एगे वइप्पओगपरिणए, अहवेगे मणप्पओगपरिणए, एगे कायप्पओगपरिणए, अहवेगे वइप्पओगपरिणए, एगे - कायप्पओगपरिणए ) Reqा मे દ્રવ્ય મનપ્રયોગ પરિણત હોય છે, એક દ્રવ્ય વચનપ્રયોગ પરિણત હોય છે, અથવા એક દ્રવ્ય મનપ્રવેગ પરિણત હોય છે એક કયપ્રાગ પરિણત હોય છે, અથવા એક દ્રવ્ય वयनप्रयास परिणत हाय छ, मने मे ४५प्रयाग पश्यिताय छे. (जइ मणप्पओग
SR No.009316
Book TitleBhagwati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages811
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy