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________________ १५० भगवतीमो पञ्चेन्द्रिययावत्-परिणतं किम् संमूच्छिममनुष्यपञ्चेन्द्रिययावत्-परिणतं गर्भव्युत्क्रान्तिकमनुष्ययावत्-परिणतम् ? गौतम ! द्वयोरपि । यदि गर्भव्युत्क्रान्तिकमनुष्ययावत्-परिणत किं पर्याप्तकगर्भव्युत्क्रान्तिकयावत् -- परिणतम्, अपर्याप्तकगर्भव्युक्रान्तिकमनुष्यपञ्चेन्द्रियौदारिकशरीरकायपर्याप्त, अपर्याप्त के विषय में भी जानना चाहिये । (जइ मणुस्स पंचिंदिय जाव परिणए किं संमुच्छिम मणुस्स पंचिंदिय जाव परिणए गन्भवतियमणुस्स जाव परिणए ? हे भदन्त ! यदि वह एक द्रव्य मनुष्य पंचेन्द्रियके औदारिक शरीररूप कायप्रयोगसे परिणत होता है तो क्या वह स्मूच्छिम मनुष्य पंचेन्द्रियके औदारिक शरीररूप कायके प्रयोगसे परिणत होता है ? या गर्भज मनुष्यके औदारिक शरीररूपकायके प्रयोगले परिणत होता है ? (गोयमा) हे गौतम । (दोसुवि) वह एक द्रश्य संमूच्छिम मनुष्यपंचेन्द्रियके एवं गर्भज मनुष्य पंचेन्द्रियके औदारिक शरीररूप कायके प्रयोगसे परिणत होता है । (जइ गम्भवक्कं तिय मणुस्स जाव परिणए किं पज्जत्तगन्धवक तिय जाव परिणए' अपजत्तगम्भवक्क तिय मणुस्स पंचिंदिय ओरालिय सरीरकाय प्पओगपरिणए) हे भदन्त ! यदि वह एक द्रव्य गर्भज मनुष्यके औदारिकशरीररूप कायके प्रयोगसे परिणत होता है तो क्या वह पर्याप्त गर्भज मनुष्य के औदारिक शरीररूप कायके प्रयोगमें परिणत (સંકૂમિ , ગર્ભ જ, પર્યાપ્તક અને અપર્યાપ્તક) વિષયમાં પણ સમજવું. (जइ मणुस्स पचिंदिय जाव परिणए किं समुच्छिम मणुस्स पंचिंदिय जाव परिणए, गभवतिय सणुस्स जाव परिणए ?) हे महत! न त मे द्र०य । મનુષ્ય પંચેન્દ્રિયના ઔદારિક શરીરરૂપ કાયપ્રયોગથી પરિણત થાય છે, તે શું તે સ ભૂમિ મનુષ્ય પંચેન્દ્રિયના ઔદારિક શરીરરૂપ કાયને પ્રગથી પરિણત થાય છે, मन मनुष्यना मोह।२४ शरी२३५ ४ायना प्रयोगथी परिणत याय छे ? (गोयमा!) हे गौतम । (दोस्नु वि) ते मे द्र०य सभूरिभ मनुष्य ययेन्द्रियना हारि શરીરૂપ કાયપ્રગથી પણ પરિણત થાય છે અને ગર્ભજ મનુષ્ય પંચેન્દ્રિયના દારિક शरी२३५ ४ायप्रयोगथा पर परिणत थाय छे. (जइ गम्भवक्कतिय मणुस्स जाव परिणए कि पज्जत्तगन्भवतिय मणुस्स जाव परिणए, अपज्जत्तगभवक्क तिय मणुस्सपंचिदिय ओरालियसरीरकायप्पओगपरिणए ? ' हे महन्त! न त એક દ્રવ્ય પર્યાપ્ત ગર્ભજ મનુષ્યના ઔદારિક શરીરરૂપ કાયના પ્રયોગથી પરિણત થાય છે, તે શું તે પર્યાપ્ત ગર્ભજ મનુષ્યના ઘરિક શરીરરૂપ કાયના પ્રયોગથી પરિણત
SR No.009316
Book TitleBhagwati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages811
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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