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________________ १४० भगवतीम्रो गए किं तिरिक्खजोणियपंचिंदियओरालियसरीरकायप्पओगपरिणए. अणुस्सपंचिंदिय-जाव-परिणए ? गोयमा ! तिरिक्खजोणिय-जाव-परिणए वा, मणुस्सपंचिंदिय-जाव-परिणए वा। जइतिरिक्ख जोणिय जाव परिणए कि जलयरतिरिक्खजोणिय जाव परिणए वा, थलयर०, खयर०, एवं चउकओ भेओ जाव वहयराणं । जइ अणुस्सपंचिंदिय-जाव-परिणए किं समुच्छिममस्तपंचिंदिय-जाव-परिणए, गम्भवक्रतियमणुस्स-जाव-परिणए ? गोयमा ! दोसुवि। जइ गव्भवतियमणुस्ल-जाव परिणए कि पजत्तगभवतिय-जाव-परिणए, अपज्जत्तगब्भवरक्रतियमणुस्सपंचिंदियओरालियसरीरकायप्पओगपरिणए ? गोयमा ! पजत्तगव्भवतिय-जाव-परिणए वा ?" ॥सू० १३॥ ___ छाया-एकं भदन्त ! द्रव्यं किं प्रयोगपरिणतस् , मिश्रपरिणतम्, विस्त्रसापरिणतम् ? गौतम ! प्रयोगपरिणतं वा, वित्रसापरिणतं वा । यदि प्रयोग एकपुद्गलद्रव्यकीपरिणामवक्तव्यता'एगे भंते ! व्वे किंपओगपरिणए' इत्यादि । सूत्रार्थ-( एगे अंते ! दव्वे किंपओगपरिणए, मीसापरिणए, वीससापरिणए) हे अदन्त ! एकद्रव्य क्या प्रयोगपरिणत होता है, 'या लिथपरिणत होता है, या विस्तसापरिणत होता है ? (गोयमा) हे गौतम ! (एओगपरिणए वा, भीमापरिणए वा, वीससा परिणए वा) एकद्रव्यप्रयोगपरिणत भी होता है मिश्रपरिणत भी होता है या એક પુકલ દ્રવ્યપરિણામ વકતવ્યતાएगे भंते ! दवे किं पभोगपरिणए' त्या सूबाथ-- (एगे अंते ! दवे किं पोहापरिणए, मीसापरिणए, वीससा परिणप?' महन्त ! ये द्र०५ शु प्रयोगपरिणत हाय छ? मिश्रयरित उय छ ? : विसापति डाय छे ? (गोयमा !) गौतम । (पओगपरिणए, मीसा परिणए बा, वीससापरिणए वा) मे द्रव्य प्रयोगपति पर डाय छ, मिश्र
SR No.009316
Book TitleBhagwati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages811
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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