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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श.८ उ.१ सू.११ सूक्ष्मपृथ्वीकायस्वरूपनिरूपणम् १२९ ____टीका-'मीसापरिणया णं भंते ! पोग्गला कइविहा पण्णत्ता ?' गौतमः पृच्छति- हे भदन्त ! मिश्रपरिणताः खलु पुद्गलाः कतिविधाः प्रज्ञप्ताः ? भगवानाह-गोयमा ! पंचविहा एण्णत्ता, तं जहा-एगिदियमीसापरिणया जाव पंचिंदियमीसापरिणया' हे गौतम ! मिश्रपरिणताः पुदगलाः पञ्चविधाः प्रज्ञप्ता', तद्यथा-एकेन्द्रियमिश्रपरिणताः यावत्-द्वीन्द्रियमिश्रपरिणताः, त्रीन्द्रियमिश्रपरिणताः, चतुरिन्द्रियमिश्रपरिणताः पञ्चेन्द्रियमिश्रपरिणताश्च भवन्ति । गौतम' पृच्छतिसब कथन प्रयोगपरिणत पुद्गल जैसा ही उन आलापकोंमें रहेगा यावत जो मिश्रपरिणत पुद्गल पर्याप्त सर्वार्थसिद्ध अनुत्तरविमानवासी पंचेन्द्रिय देवोंके प्रयोगले परिणत हुए कहे गये हैं वे यावत् आयत संस्थान परिणत भी होते हैं ऐसे भी कहे गये हैं। टीकार्थ-नवदण्डकों द्वारा प्रयोगपरिणत पुद्गलोंके भेदोंका निरूपण करनेके बाद अब सुत्रकार मिश्रपरिणत पुद्गलोंका निरूपण कर रहे हैं इसमें गौतमने उनसे ऐसा पूछा है कि 'भीसा परिणया णं भते ! पोग्गला कइविहा पण्णत्ता' हे भदन्त ! जो मिश्रपरिणत पुदगल कहे गये हैं वे कितने प्रकार के होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु उनले कहते हैं 'गोयमा' हे गौतम ! 'पंचविहा पण्णत्ता' मिश्रपरिणतपुद्गल पांच प्रकार के कहे गये हैं। 'तंजहा' जो इस प्रकारसे हैं 'एगिदियमीलापरिणया जाव पचिंदियमीलापरिणया' एकेन्द्रियमिश्रपरिणत यावत द्वीन्द्रियमिश्रपरिणत, श्रीन्द्रियमिश्रपरिणत, चतुरिन्द्रियमित्रपरिणत ‘મિશ્રપરિણત પુદગલ' કહેવા જઇએ બાકીનું સમરત કથન પ્રયોગપરિણત પુદગલેના કથન પ્રમાણે જ સમજવુ. ચાવત જે મિશ્ર પરિણત યુગલે પર્યાપ્ત સર્વાર્થસિદ્ધ અનુત્તર વિમાનવાસી પંચેન્દ્રિય દેના પ્રયોગથી પરિણત થયેલા કહ્યા છે, તે પુગેલો (કાવત) આયત સંસ્થાન પરણત પણ હોય છે એમ સમજવું ટીકાથ– નવ દંડકે દ્વારા પ્રયોગપરિણત યુગલેના ભેદનું નિરૂપણ કરીને હવે સૂત્રકાર મિશ્રપરિણત યુગલોનું નિરૂપણ કરે છે–આ વિષયને અનુલક્ષીને ગૌતમ સ્વામી भावार प्रभुने वा न पृछे छे ४- 'मीसापरिणयाणं भंते ! पोग्गला · कइविहा पपणत्ता?) महन्त ! २ पुगस मिश्रपरिणत या छ, तमना सा प्रा डाय छ? ___महावीर प्रभुने। उत्तर- 'गोयमा !' गौतम ! “पचविहा पण्णत्ता तंजहा' भिश्रपरित पुसाना नीय प्रमाणे यांय ४२ ४ा छ- 'एगिदिय मीसापरिणया, जाव पचिंदिय मीसापरिणया' (१) मेन्द्रिय भित्रपरिणत, (२) हीन्द्रिय मिश्रपरिणत, (3) त्रीन्द्रिय मिश्रपरि, (४) तुरिन्द्रिय मिश्रपरिणत मन (५) પચેન્દ્રિય મિશ્રપરિણત
SR No.009316
Book TitleBhagwati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages811
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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