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________________ - - - भगवतीसूत्रे प्रमाणविशेषाः पूर्वपूर्वापेक्षया उत्तरोत्तरम् अष्टगुणाः सन्तीति। परस्परं भेद स्तथापि प्रत्येकं ते अनन्तपरमाणुत्वं नियमतो न त्यजन्ति, इत्यभिप्रायेण 'सा एगा उस्साह सपिहया इवा' इत्याधुक्तम् । अथोक्तप्रमाणेषु पूर्वपूर्वा पेक्षया उत्तरोत्तरस्याष्टगुणत्वं सूत्रकार एव प्रतिपादयति- 'अट्ठ' इत्यादि । 'अट्ठउत्सहसण्हियाओ सा एगा सहसण्हिया' या उत्श्लक्ष्णश्लक्ष्णिका पूर्व प्रतिपादिता सा अष्टगुणिता एका लक्ष्णश्लक्ष्णिका भवति, एवम् 'अट्ट सण्ण सहियाओ सा एगा उड्ढरेणु' या लक्ष्ण कणिका, उक्ता सा अष्टगुणिता एका पर्यन्त १० प्रमाण विशेष पूर्वपूर्वकी अपेक्षा उत्तरोत्तर आठगुने होते हैं इस अपेक्षा इन सबमें परस्परमें भेद है तो भी ये सब परमाणु की अनन्तताका परित्याग नहीं करते हैं अर्थात् इन सबमें अनन्त परमाणु रहते हैं इसीलिये इन्हें चाहे उत्श्लक्ष्णश्लक्ष्णिका कहो चाहे श्लक्ष्णश्लक्ष्णिका कहो, चाहे उर्ध्वरेणु आदिकहो एक ही बात है ऐसा मुत्रकारने कहा है। अब सूत्रकार इसी बातको कि इनमें सबमें उत्तरोनरमें पूर्व पूर्वकी अपेक्षा अष्टगुणता है स्वयं प्रतिपादन करते हुए कहते हैं कि 'अट्ट उस्साहसण्हियाओ सा एगा सहसण्हिया' जो उत्श्लक्ष्णश्लक्षिणका पहिले अभी कही गई है उसमें आठका गुणा करने पर श्लक्ष्ण लक्ष्णिका होती है अर्थात् आठगुणी उत् लक्ष्णश्लणिकासे एक लक्ष्णलक्षिणका बनती है इसी तरहसे 'अट्ट सण्हिसण्यिाओ सा एगा उड्ढरेणू' आठ लक्ष्णश्लक्ष्णिकाओंसे एक उर्ध्वरेणुप्रमाण बनना લઈને અંગુલ પર્યન્તના ૧૦ પ્રમાણે એકમેક કરતાં ઉત્તરોત્તર આઠ ગણ થતાં જાય છે એ અપેક્ષાએ તે તેમની વચ્ચે પરસ્પરમાં ભેદ જણાય છે, પરંતુ તે દસે દસ પ્રમાણે પરમાણુની અનંતતાને પરિત્યાગ કરતા નથી. એટલે કે તે દરેકમાં અનંત પરમાણુ રહે છે, તેથી તેને ભલે ઉતલણમલણિકા કહે, કે લક્ષણહિકા કહે, કે ઉર્વરેણુ આદિ કહે, પણ તે એક જ વાત છે, એમ સૂત્રકારે કહ્યું છે. ઉપર્યુંકત ૧૦ પ્રમાણમાના પ્રત્યેક ઉત્તર પ્રમાણ, પૂર્વ પ્રમાણ કરતાં દસગણું परिभाषा छ, मे वातर्नु अतिपाहन ४२वा निमित्त सत्रा२ ४ थे 3 'अट्ट उस्साह सण्डियाओ सा एगा सण्डसण्डिया' GARMERalest ४२di मारा। परिभाषવાળી કલર્ણણિક હોય છે. (ઉતર્લી લક્ષિકાનું રિવરૂપ આ સત્રમાં જ, પહેલા सभागाभा माव्यु छे) 'भट्ट सहि सहियाओ सा एगा उडूबरेणु' . भा
SR No.009315
Book TitleBhagwati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages880
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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