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________________ 1 प्रमेयचन्द्रिका टीका श. ७ उ. १० सु. १ धर्मास्तिकायादिवर्णनम् ७९३ परिसा पडिगया यावत् समवसृत भगवन्तं विज्ञाय धर्मकथा श्रोतु पर्पत् आगता, तच्छ्रुत्वा च पर्षत् प्रतिगता ' तेणं कालेणं तेणं समर्पणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेहें अंतेवासी इंदभूई णामं अणगारे गोयमे गोत्तेणं' तस्मिन् काले तस्मिन् समये श्रमणम्य भगवतो महावीरस्य ज्येष्ठः अन्तेवासी शिष्यः इन्द्रभूतिर्नाम अनगारः गौतमः गोत्रेण ' एव जहा विइय ए नियंger जाव भिक्खायरियाए अडमाणे एवं यथा द्वितीयशत के पश्चमे निर्ग्रन्थोदेशके यावत् भिक्षाचर्यायाम् अटल = परिभ्रमन् 'अठापज्जत भत्त-पाणं पडिग्गाहित्ता रायगिहाओ नगराओ जाव- अतुरियं अचवलं, निवास स्थानके पासमें था पधारे 'जाव परिसा पडिगया' यावत् भगवानको आये हुए जानकर धर्मोपदेश आदिको सुनने के लिये परिषद वहां आई धर्मोपदेश सुनकर वह परिषद् वापिस अपनेर स्थान पर चली गई 'तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्टे अंतेवासी, इंदभूईनामं अणगारे गोयमे गोरोणं' उस काल और उस समय में श्रमण भगवान के प्रधान दीक्षा पर्यायकी अपेक्षा ज्येष्ठ अन्तेवासी शिष्य इन्द्रभूति अनगार जो कि गौतम गोत्रके थे, 'एव जहा बियसए नियंठुद्देसए जाव भिक्खायरियाए अडमाणे' जैसा द्वितीयशतकमें पांचवें निर्ग्रन्थ उद्देशक में कहा गया है यावत् भिक्षाचर्या में परिभ्रमण करते हुए, तथा 'अहापजत्तं भत्त पाणं पडिग्गाहित्ता रायगिहाओ नगराओ' उस भिक्षाचर्या में जो उन्हें अरस, विरस आदिरूप आहार मिला उसे लेकर, वे राजगृह સમીપમા આવેલા ગુરુશિલક મૈત્યમા પધાર્યા जात्र परिसया पडिगया ' ભગવાનના આગમનના શુભ સમાચાર જાણીને લેાકેા ધર્માંપદેશ સાભળવા માટે આવ્યા, मने धर्मोपदेश सामणीने दो। पोतपोताने स्थाने पाछा ईर्ष्या 'तेण कालेनं तेणं समएणं समणस्म भगवओ महावीरस्स जेट्टे अंतेवासी, इंदभूई नाम अणगारे गोयमे गोत्तेणं' त अणे अने ते समये श्रमण भगवान महावीरना प्रधान शिष्य (દીક્ષા પર્યાયથી અપેક્ષાએ જયેષ્ઠ શિષ્ય ઇન્દ્રભૂતિ અણુગાર હતા તેએા ગૌતમ ગોત્રના एव जहा विश्यसए नियहुदेसर जाव सिक्खायरियाए अडमाणे ' અહીં ખીજા શતકના પાંથમા નિ ય ઉદ્દેશકનું કથન ગ્રહણ કરવુ તે ઇન્દ્રભૂતિ [ગૌતમ] मधुगारने भिक्षायर्या भाटे परिभ्रमण १२ता ४२ता, 'अहा पज्जतं भत्तपाणं पडिगाहिता रायगिहाओ णयराओ' ने मरस, विरस सहि३य आहार प्राप्त थयो ते 4 હતા " - 3
SR No.009315
Book TitleBhagwati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages880
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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