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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श. ७ उ ९ सृ. ५ वरुणनागनप्ठ्कचरित्रम् ७५९ ( वरुणेन नागनप्तृकेण एवमुक्तः सन् आशुरक्तः- आशु शीघ्रं रक्तः कोधारुणनेत्रः यावद रुष्टः कुपितः, चाण्डिकियतः रौद्ररूपः मिसमिसयन् क्रोधाग्निना दन्तैरोष्ठदंशनपूर्वकं 'मिस - मिस' इति शब्दमुच्चारयन् धनुः परामृशति = गृह्णाति, 'धणु परामुसित्ता उसु परामुसई' धनुः परामृश्य = आदाय इषु वाणं परामृशति = गृह्णाति, 'उस परामुसित्ता ठाणं ठाई' इषु परामृश्य गृहीत्वा स्थान = पादन्यासविशेषलक्षणपूर्वक तिष्ठति - सज्जतया सन्नद्धो भवति, ठाण ठिच्चा आययकन्नायय उसु करेइ ' स्थान स्थित्वा सज्जीभूय आयतवर्णाय - तम् आयतम् आकृष्ट कर्णायत कर्णपर्यन्तविस्तृतमिति आयतकर्णाम् इषु =वाणं करोति, 'आययकन्नायय' उसु करिता वरुण णागणत्तुयं गाढप्पहारीकरेइ' आयतकर्णायतम् इषु कृत्वा वरुणं नागनप्तृकम् गाढप्रहारी मनुष्य से कहा तब वह मनुष्य इकदम वरुण के ऊपर क्रोधसे युक्त हो गया यावत् रुष्ट हो गया, कुपित हो गया, चण्डकित हो गया, रूपवाला बन गया । क्रोध से वह दांतों द्वारा ओठोंको दबाने लग गया तथा 'मिस मिस' इस प्रकारके शब्द को उच्चारते हुए उसने अपने धनुषको उठालिया 'घणुं परामुसित्ता उसे परामुस' धनुषको उठाकर उसने फिर बाणको उस पर चढालिया 'उसु परामुस्सित्ता ठाणं ठा' धनुष पर बाण चढाकर फिर वह इस प्रकार करने के लिये कटिबद्ध हो गया 'ठाणं ठिच्चा' कटिबद्ध होकर 'आययकन्नाययं उसु करेइ' फिर उसने धनुष पर चढाये हुए बाणको कानोंतक खींचा 'आययकन्नाय उसु करिता वरुणं णागणत्तय गाढप्पहारीक रेइ' कानोंतक खींचकर फिर उसने उस बाणसे नागपौत्र वरुणके ऊपर પૌત્ર વરુણે તે પુરુષને આ પ્રમાણે કહ્યું, ત્યારે તેને વણુ ઉપર રાષ ચડયા, તે અતિશય કાપાયમાન થયા, તે પ્રચર્ડ અને રૌદ્રરૂપવાળા બની ગયા. ક્રેાધથી તે દાતા વડે હાઠ દખાવવા મડી ગયા, અને ધૂવાવાં થઈને, દાંત કચકચાવીને તેણે પેાતાનુ ધનુષ मां बी. 'धं परामुसित्ता उसुं परामुसइ ' धनुषने हाथभां सहने तेना उपर तीर याव्य उसु परामुसित्ता ठाणं ठाइ તીર ચડાવીને તે વરુણુ ઉપર તેને अहार ४२वाने पुटिनद्धथ गये। 'आययकन्नाययं उसुं करेड़ ' त्यार माह तेथे धनुष पर थडावेसा माथुने न सुधी मेन्यु, 'आययकन्नाययं उसुं करिता वरुणं नागणयं गाढप्पहारी करेइ' माने अन पर्यत मेथाने तेथे निशान सहने नागपौत्र वइस्यु ७५२ ते मानो गाढ प्रहार यो 'तपणं से णागणत्तुए वरुणे •
SR No.009315
Book TitleBhagwati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages880
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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