SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 728
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६९६ भगवतीसूत्रो भीमं भयङ्करं दुष्प्रधर्षे सांग्रामिकं रणधुरन्धरम् अयोध्यं योद्धमशक्यम् उदायिं तन्नामानं हस्तिराजं परिकल्पयन्ति-सजीकुर्वन्ति, 'हयगय-जावसनाति हय गज-यावत् रथ-योधकलितां चतुरद्गिणी सेनां सन्नाहयन्ति-सज्जीकुर्वन्ति । "सन्नाहित्ता जेणेच कृणिए राया तेणेव उवागच्छंति' सन्नाह्य सजीकृत्य यत्रैव यस्मिन्नेव प्रदेशे कूणिको नाम राजा आसीत् तत्रैव तस्मिन्नेव प्रदेशे उपागच्छन्ति 'उवागच्छित्ता करयल-जाव कणियस्स रन्नो तमाणत्तिय पञ्चप्पिणंति' उपागत्य करतल-यावत्-शिरसावत मस्तकेऽञ्जलिं कृत्वा कणिकम्य राज्ञः तामाज्ञप्तिका प्रत्यर्पयन्ति निवेदयन्ति, 'तए णं से कणिए राया जेणेव मज्जणघरं तेणेव उवागच्छइ' ततः खलु स कूणिको राजा यत्रैव मज्जनगृहस्नानागारं विद्यते स्म तत्रैव उपागच्छति, 'उवागच्छित्ता मजणघरं अणुप्पहै उस उदायी हस्तिराज को ऐमा सज्जित किया कि जिस से वह रण में किसी से जीता न जासके और सब से बलिष्ठ ज्ञात होने लगा-अर्थात उसे देखते ही शत्र भयभीत हो जावे । 'हय-गयजाव-सन्नाति' इसी तरह से उन्होंने चतुरंगिणी सेणा को भी घोडा, हाथी, रथ और योद्धाओं से सज्जित कर दिया. 'समाहिता' सज्जित करके फिर वे 'जेणेव कूणिए राया-तेणेव उवागच्छंति' जहां पर कणिक राजा थे-वहाँ पर गये। 'उवागच्छित्ता करयल जाव कर्णियस्स रनो तमाणत्तियं पचप्पिणंति' वहां जाकर उन्हों ने कणिक राजा को दोनों हाथ जोडकर नमस्कार किया और कहा-जो आज्ञा आपने हमे दी थी, हमने उसके अनुसार सब को सज्जित कर दिया है-ऐसा उनसे निवेदन किया 'तएणं से कूणिए राया जेणेव मजणघरं तेणेव उवागच्छड' સૂત્રમા આપ્યા પ્રમાણે સમજવું, તેમણે તે હાથીને એવો તે સુસજિત કર્યો કે જેથી રણમાં તેને કઇ પણ પરાજિત કરી શકે નહીં, અને તેનું સ્વરૂપ જોઈને શત્રુઓ પણ नयीत ४ य. हय-गय-रह-जाव सन्नाति गश भर , साथी, २२ मते योद्धामाथा युत यतु२ मा सेनाने ५ सुसहित ४0 'सनाहित्ता' तन यार शत 'जेणेव कणिए राया तेणेव उवागच्छंति' नया २रा उता, त्यां गया. 'उवागच्छित्ता करयल जाव कणियस्स रणो तमाणत्तिय पञ्चप्पिणंति' त्या सधन भरी लि त भन्ने डाय लेडीन नम२ या અને આ પ્રમાણે કહ્યું- “હે રાજ! આપની આજ્ઞાનુસાર અમે હસ્તિરાજ ઉદાયીને तथा यता सेनाने स०१०४ ४२री दीधी छे' 'तएणं से कणिए राया जेणेव मज्जणघर तेणेव उवागच्छइ' तेमना मा प्रधान वयनी सinजीन एशि रात न्यां नान2 तु, त्या गया. 'उवागच्छित्ता मज्जणघर अणुप्पविसई' त्याने
SR No.009315
Book TitleBhagwati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages880
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy