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________________ ६०४ भगवती सूत्रे फासा' हे गौतम ! त्रिविधाः भोगाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा - गन्धाः, रसा, स्पर्शाच । गौतमः पृच्छति - 'कइविहा णं भंते ! कामभोगा पण्णत्ता ?' हे भदन्त ! कति विधाः खलु कामभोगाः मज्ञप्ताः ? भगवानाह - 'गोयमा ! पंचविद्या कामभोगा पण्णत्ता, तं जहा - सद्दा, रूवा, गंधा, रसा, फासा' हे गौतम ! पञ्चविधाः कामभोगाः प्रज्ञप्ताः, तानेवाह - तद्यथा - शब्दाः, रूपाणि गन्धाः, रसाः, स्पर्शाच । अथ समुच्चयजीवनाश्रित्य गौतमः पृच्छति - 'जीवा णं भंते! किं कामी, भोगी ?' हे भदन्त ! जीवाः खलु किं कामिनःकामवन्तः भवन्ति ? अथ च किं भोगिनः भोगवन्तो भवन्ति ? भगवानाह - 'गोयमा ! जीवा कामी त्रि भोगी वि' हे गौतम! जीवाः कामिनोऽपि, अथ च भोगिनोऽपि भवन्ति । गौतमस्तत्र कारणं पृच्छति 'सेकेणणं भते ! एवं बुच्च - जीवा कामी वि, भोगी त्रि ? हे भदन्त ! तत् स्पर्श | अब गौतमस्वामी प्रभुसे पूछते हैं 'कविहा णं भंते ! कामभोगा' पण्णत्ता' हे भदन्त ! कामभोग कितने प्रकारके कहे गये हैं ? उत्तर में प्रभु कहते हैं 'पंचविहा कामभोगा पण्णत्ता तंजहा सदा, ख्वा, गंधा, रसा, फासा' हे गौतम ! कामभोग पांच प्रकारके कहे गये हैं जैसे शब्द, रूप गंध, रस और स्पर्श । अब गौतमस्वामी समुच्चयजीवोंको आश्रित करके प्रभुसे पूछते हैं 'जीवाणं भंते किं कामी भोगी ?' हे भदन्त ! जीव क्या कामवाले होते हैं या भोगवाले होते हैं ? उत्तरमें प्रभु कहते हैं 'गोयमा' हे गौतम ! जीवा कामी वि, भोगी वि' जीव कामवाले भी होते हैं, और भोगवाले भी होते हैं । 'सेकेट्टेणं भंते ! एवं बुच्चह, जीवा कामी वि, भोगी अभाछे गंधा, रसा, फासा, (१) अध (२) २स (3) स्पर्श हवे गौतम स्वाभी महावीर अलुने भेवा प्रश्न पूछे छे ' कइविहाणं भंते कामभोगा पण्णत्ता !" હે ભદન્ત ! કામ ભેાગના કેટલા પ્રકાર કહ્યા છે ? ( उत्तर पंच विहा कामभोगा पण्णत्ता ' हे गौतम अभ लोगना याय પ્રકાર કથા છે तंजहा ' म ' 'सद्दा, रूत्रा, गंधा, रसा, फासा ' (१) (२) ३५, (3) गंध (४) २स अने (च) स्पर्श. " હવે સમુચ્ચય છત્રના વિષયમા ગૌતમ સ્વામી આ પ્રમાણે પ્રશ્ન પૂછે છે जीवाणं भते ! किं कामी भोगी !' हे अहन्त ! वो अभी होय छे लोगी डा छे ? उत्तर 'गोयमा' हे गौतम! ' जीवा कामी वि भोगी वि अभी ( अभयुक्त ) यायु होय छे भने लोगी ( लोगयुक्त ) याशु होय छे. गौतम स्वामीनी प्रश्न- ' से केण्णं भंते ! एवं बुचड़, जीत्रा कामी
SR No.009315
Book TitleBhagwati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages880
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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