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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श. ७ उ. ७ सु. २ कामभोगनिरूपणम् ६०३ युक्तत्वाद् जीवस्वरूपा अपि भवन्ति, अजीवद्रव्याणां गन्धादिगुणोपेतत्वात् अजीवस्वरूप अपि भोगा भवन्ति । गौतमः पृच्छति - 'जीवाण भंते ! भोगा, अजीवाणं भोगा ?" हे भदन्त ! जीवानां भोगा भवन्ति ? अथवा अजीवानां भोगा भवन्ति ? भगवानाह - 'गोयमा ! जीवाणं भोगा, णो अजीवाणं भोगा ' हे गौतम ! जीवानां भोगा भवन्ति नेपां सब्ज्ञितया भोगसंभवात् नो अजीवानां भोगाः भवन्ति, तेपाम् चेतनाराहित्येन भोगासंभवात् । गौतमः पृच्छति'कविहाणं भंते ! भोगा पण्णत्ता ?" हे भदन्त ! कतिविधाः खलु भोगाः प्रज्ञप्ताः ? भगवानाह - 'गोयमा ! तिविहा भोगा पण्णत्ता, तं जहा - गंधा, रसा, भोग जीव स्वरूप भी होते हैं और अजीव द्रव्य गंधादि गुणयुक्त होते हैं, इसलिये भोग अजीव स्वरूप भी होते हैं । अब गौतमस्वामी प्रभुसे ऐसा पूछते हैं कि 'जीवाणं भंते ! भोगा अजीवाण भोगा' हे भदन्त ! भोग जीवोंके होते हैं या अजीवोंके होते हैं ? उत्तरमें प्रभु कहते हैं कि 'गोयमा' है गौतम 'जीवा णं भोगा, णो अजीवाणं भोगा' जीवों के भोग हैं, अजीवोंके भोग नहीं होते हैं । जीव संज्ञी होते हैं इसलिये उनके भोग संभावित है अजीवोंके चेतना रहित होनेके कारण भोगोंका होना असंभव है । अब गौतमस्वामी प्रभुसे ऐसा पूछते हैं कि 'कइविहाणं भंते ! भोगा पण्णत्ता' हे भदन्त ! भोग कितने प्रकारके कहे गये हैं ? उत्तर में प्रभु कहते हैं गौतम ! 'तिविहा भोगा पण्णत्ता' भोग तीन प्रकार के कहे गये हैं । 'तंजहा ' वे इस प्रकार से है 'गंधा, रसा फासा' गंध, रस और હાય છે, તે કારણે ભેગને છવરૂપ કહ્યાં છે, અજીવ દ્રષ પણ ગંધાદિથી યુકત હાઈ શકે છે, તેથા ભાગને અજીવરૂપ પણ કહ્યા છે હવે ભાગના વિષયમાં ગૌતમ સ્વામી ચેાથે પ્રશ્ન આ પ્રમાણે પૂછે છે - जीवाणं भंते ! भोगा, अजीवाणं भोगा ?' हे लहन्त लोगनु अस्तित्व लाभां होय छे सलवोभा हाय छे ? उत्तर ' गोयमा ! जीवाणं भोगा, जो अजीवाणं भोगा ' હે ગૌતમ ! જીવામાં જ ભાગને સદ્દભાવ હાય છે, કારણ કે જીવે સ નીહાય છે તેથી તેમનામાં ભાગે! સ ભવી શકે છે અજીવામા ભાગને સદ્ભાવ નથી કારણ કે તેઓ ચેતનાથી રહિત હાય છે તેથી અવામાં ભેગે સંભવી શકતા નથી. गौतम स्वाभी हुवे लोगना प्रहारो विषे प्रश्न पूछे छे ' कडविहाणं भंते भोगा पण्णत्ता ?' डे महन्त लोग डेटा अमारन उद्या हे ? उत्तर 'तिविहा भोगा पण्णत्ता हे गौतम लोग ऋणु अारना उद्या' तंजहा ते तु प्रा
SR No.009315
Book TitleBhagwati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages880
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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