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________________ ममेयचन्द्रिकाटीका श. ७ उ. ६सू. ३ भाविभारतवर्षावस्थास्वरूपनिरूपणम् कट-मडम्ब द्रोणमुख-पत्तनाऽऽश्रमसंग्राहसंनिवेशगतं जनपदम्, चतुष्पद-गवेलकान खेचरान् पक्षिसंघातान, ग्रामारण्यप्रचारनिरतान त्रसांश्च प्राणान, बहुप्रकागन वृक्षगुच्छ गुल्म- लता - वल्ली-तृण-पर्वक हरितौषधि-मवाला ङ्कुरादींश्च तृणवनस्पतिकायिकान् विश्वसयिष्यन्ति, पर्वत गिरि-शिलोच्चय उत्स्थल- भ्राष्ट्रादींश्च वैताढ्य गिरिवर्जि तान् विद्रावयिष्यन्ति, सलिल बिल-गर्त दुर्ग-विषम-निम्नोन्नतानि च गङ्गासिन्धुवर्जितानि समीकरिष्यन्ति । तस्यां खलु समायां भारतवर्षस्य भूमेः कीदृशः ( जेणं भारहेवासे गामाऽऽगर-नगर- खेड - कव्वड-मडबोणमुह-पट्टणा समसंवाह संनिवेसग्य जणवय, चउप्पयगवेलए, खयरे, पक्खिसंघे, गामारपयारनिरए तसेच पाणे, बहुप्पगारे रुखगुच्छा-गुम्मलय वलितण पग हरितोस हिपचालंकुरमादीए य तणवणस्स इकाइए विद्धंसे हिंति) जिससे भारतवर्ष में ग्राम, आकर, नगर, खेट, कर्बट, मडंय, द्रोणमुख, पट्टण और आश्रम संवाह और संनिवेश इनमें रहा हुआ मनुष्य समूह, चतुष्पद महिषी आदि, गवेलकगाय, मेष खेचर पक्षी तथा ग्राम एवं जंगल में चलते हुए सजीव, अनेकप्रकारके वृक्ष, गुल्म, लताएँ, बेलें, घास, इक्षु, दुर्वा, औषधियां, मवाल, अङ्कुर, एवं तृण, वनस्पतियां ये सब नष्ट हो जायेंगी । (पञ्चय् - गिरि- डोंगर - उत्थल - भट्टियाईए य वेचड्ढ गिरिवज्जे विरावेहिति) वैताढ्यं पर्वतको छोड़कर बाकी सब पर्वत, इंगर, के ऊँचे स्थल, धूलि रहित स्थान ये सब भी नष्ट हो जावेंगे | ( सलिल - बिल-गड-दुग्ग-विसम निष्णुन्नयाई च गंगा सिंधु वज्जा' समीकरे हिंति) गंगा और सिंधु नदी को छोड़कर बाकी के हशे अने अत्यंत वेगवाजी भणधाराथी युक्त इथे (जे णं भारहे वासे गामissगर नगर - खेड - कञ्वड-मड व - दोणमुह - पट्टणा - समसवाहसंनिवेसगय जणचयं, चउपघ - गवेलए, खहरे, पक्खिसंचे, गामारम्भपयारनिरये तसेच पाणे, बहु पगारे रुक्स - गुच्छा, गुल्मलय, वल्ली, तणपव्वयग, हरितासहिपवालं कुरमादीए वे तणवर्णसइकाइए विद्ध सेर्हिति ) ने आरो भरतक्षेत्रना गाम, मापुर, नगर, गेट, उमर्ट મડ ખ, દ્રોણુમુખ, પટ્ટણ અને આશ્રમસ વાહ અને સ નિવેશમા રહેલા જનસમૂહના પણ નાશ थशे गाय, लेस, धैर्य आहि थोपां लनवरो, मेयर (पक्षी), गाम अने वनभा इरता त्रस છવા વગેરેને પણુ નાશ થશે અનેક પ્રકારનાં વૃક્ષા, ગુક્ષ્મા, લતાએ, વેલા, ઘાસ, ઇક્ષુ (शेरडी), दुर्वा (हल), मोषधियों, प्रवास, या मुझे, तृणु महि वनस्पतियोनी पशु नाश थ थे ( पत्रय, गिरि, डोंगर, उत्थल, भट्टिमाईए य वेयड्ढगिरिवज्जे विरावेहिंति ) वैताढ्य पर्वत सिवायना माडीना समस्त पर्वती, गिरि, डूंगर, धूणना अनेसा टेश्राम, भने धूणरडित स्थानानो नाश येथे ( सलिल - बिल-गड - दुग्गविसम निष्णुन्नयाई च गंगासिंधुवज्जाई समीकरे हिंति ) गंगा भने सिधु
SR No.009315
Book TitleBhagwati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages880
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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