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________________ ३७० भगवतीसुत्रे पातविरमाणादिसर्वपरिग्रहविरमणान्तपञ्चमहाव्रतरूपं विज्ञेयम्, देशमूलगुणप्रत्याख्यानं च, तच्च चक्ष्यमाणस्थूलप्राणातिपातविरमणादिस्थूलपरिग्रहविरमणान्तं पश्चाणुव्रतरूपं वोध्यम्, तत्र साधूनां सर्वमूलगुणप्रत्याख्यानं, श्रावकाणां तु देशमूलगुणप्रत्याख्यानमवसेयम् । गौतमः पृच्छति-'सत्यमूलगुणपच्चक्खाणे णं भंते ! कइविहे पण्णत्ते ?' हे भदन्त ! सर्व मूलगुणप्रत्याख्यानं महाव्रतं खलु कतिविध प्रज्ञप्तस् ? भगवानाह-'गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते' हे गौतम ! सर्व मूलगुण प्रत्याख्यानं पञ्चविधं प्रज्ञप्तम्, 'तं जहा' तद्यथा-'सचाओ पाणागुणप्रत्याख्यान और दूसरा देशमूलगुणप्रत्याख्यान सर्वमूलगुणप्रत्याख्यान में सर्वप्रकारले सर्वप्राणातिपातका यावत् सर्वपरिग्रहका त्याग हो जाता है तो यह पांच महाव्रतरूप कहा गया है । देसमूलगुण पच्चक्खाणेय' एक सर्व मूलगुणप्रत्याख्यान ओर दूसरा देशमूलगुणप्रत्याख्यान में सर्व प्रकार से सर्व प्राणातिपात का यावत् सर्वपरिग्रह का त्याग हो जाता है. सो यह पांच महाव्रतरूप कहा गया है। देशस्तूलगुण प्रत्याख्यान में स्थूल प्राणातिपात आदि का त्याग होता है- सो यह पांच अणुव्रत रूप कहा गया है। साधुओं के सर्वमूलगुणप्रत्याख्यान होता है और श्रावकों के देशमूलगुणप्रत्याख्यान होता है। गौतमम्बानी अब प्रभु से इसी बात को पूछते हैं कि"सच्चमलगुणपच्चक्वाणे जं भंते ! कविहे पण्णत्ते' हे भडन्त ! महाव्रतरूप सर्वलूलगुणप्रत्याख्यान कितने प्रकार का कहा गया है ? इसके उत्तर में प्रभु उनसे कहते हैं-'गोयमा' हे गौतम ! 'पंचविहे पण्णत्ते' महाव्रतरूप सर्वमूलगुणप्रत्याख्यान पांच प्रकार का कहा गया है- 'तं देसमूलगुणपच्चक्खाणे य' (१) सब भूलगुण प्रत्याभ्यान, अने. (२) शिभूतगुष्य પ્રત્યાખ્યાન સર્વ પ્રકારના પ્રાણાતિપાતનો ત્યાગ આદિ રૂપ જે પાંચ મહાવ્રતો છે, તેમને સર્વમૂળગુણ પ્રત્યાખ્યાનરૂપ માનવામાં આવે છે દેશમૂલગુણ પ્રત્યાખ્યાનમાં સ્કૂલ પ્રાણાતિપાત વિરમણ આદિ પાચ આશુત્રને ગણવામાં આવે છે સાધુઓ દ્વારા સર્વમૂલગુણ પ્રત્યાખ્યાન થાય છે અને શ્રાવકે દ્વારા દેશમૂલગુણ પ્રત્યાખ્યાન થાય છે એટલે કે સાધુઓને માટે પાંચ મહાવ્રત અને શ્રાવકે માટે પાંચ અણુવ્રતનું પાલન આવશ્યક - गौतम स्वामीन - सम्यमलगणपच्चक्खाणे णं भते! कइ विहे पण्णत्ते ?' 3 महन्त ! मडावत३५ सर्वभूमशुष्य प्रत्याज्यानना ८८ ४२ ४था छ ? ____ उत्त२.. 'गोयमा !! ॐ गौतम 'पंचविहे पण्णत्ते' मानत३५ सर्वभूतशुष्य प्रत्याभ्यानन पाय प्र.२ ४छ. "तंजडा' त प्रा। मा प्रमाणे छ ગણાય છે.
SR No.009315
Book TitleBhagwati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages880
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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