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________________ * ar **** ३३६ भगवतीस्गे 7 1 युक्तम्, उद्गगोत्पादनैपणासुपरिशुद्धम्, वीताङ्गारम्, वीत घूमम्, संयोजनादोषविषयुक्तम्, अनुरमुरम्, अचपचपस्, अद्भुतम्, अविलम्बितम्, अपरिशाटम्, अक्षोः प्राजन-णानुलेपनभूतम्, संयमयात्रा मात्रामत्ययिकम्, संयमभारवहनार्थतायें विलमिव भूतेन - आत्मना आहारम् आहरति । एष खलु गौतम ! शा तीतरय, शस्त्रपरिणामितस्य यावत्-पान- भोजनस्य अयमर्थः, मज्ञप्तः, तदेवं भदन्त १२ इति ॥ मृ० ११ ॥ / लिये जो नहीं बनाया गया है, नहीं कराया गया है, ये साधुके लिये है ऐसा संकल्प दाताने जिसमें नहीं किया है, आमंत्रितकरबुलाकर जो लाधुको नहीं दिया गया है, मूल्य देकर जो साधुके नहीं खरीदा गया है, जो अनुद्दिष्ट है, नवकोटिसे जो विशुद्ध है, दशदोषों से जो रहित है उद्गम एवं उत्पादेषणाके दोषोंसे जो परिवर्जित है, अंगारदोषसे जो रहित है, धूमदोषसे, जो. रहित है, संयोजनादोषसे जो रहित है, सुरसुरध्वनिसे रहित होकर, चपचप ध्वनि से रहित होकर झल्दीर नहीं, धीरेर भी नहीं खाते हैं, आहारको थोडा सा भी नहीं छोडते हैं, और - गाडीके घुस के मलकी-तरह अथवा वण. ( गूमड़ा) के ऊपर के लेपकी तरह, केवल संयम के निर्वाह करने - निमित्त ही, बिलमें प्रविष्ट हुए सर्पकी तरह उस आहारको जो अपने उदरस्थ करते हैं । हे गौतम ! ऐसा अर्थ शस्त्रातीत, शस्त्र परिणामित, यावत् पानभोजनका कहा कहा गया है । है भदन्त । બનાવ્યેા હાતા નથી, સાધુને નિમિત્તે તૈયાર કરાવવામાં આવ્યે હાતા નથી, આ આહાર સાધુ માટે છે,’ એવા સકલ્પ દાતાએ કર્યાં હાતા નથી, જે આહાર મેલાવીને સાધુને આપવામાં આવ્યે હાતા નથી, જે પૈસા આપીને સાધુ માટે ખરીદાયા નથી; જે આહાર અનુદ્દિષ્ટ છે, જે નવ પ્રકારે શુદ્ધ છે, દશ દાષાથી જે રહિત છે, ઉદ્ગમ અને अत्यद्वेिषयामा' दोषांथी ने' रहित छे, "ने साहार' 'मगारहोषथी, धूमाषथी अने सयेन्ना 'दोषथी, इडित होया है, मेवां न मांडारपालाने साधुन 'पोताना : पयेभिर्भा से छे.. ते भाडार माती वमते साधु 'अपयय' हे 'सुरसुर' आदि बोलुपता सून्य ધ્વનિ કરતા નથી; બહુ ઝડપથી પણ ખાતા નથી અને બહુ ધીમે ધીમે પર્ણ ખાતા नथी, थोडी पलु आहार मे है भूता नथी, गायेंनी घरीभां देवी रीते हीवेसनु न ४२वामां आवे छे, ं ने शुभंडार मेम से - वासावे ; ते ગ્રંથમને નિર્વાહ કરવાને માટે જ, સાધુ દરમાં પ્રવેશ કરતા સૂર્પની માફક તેહાએ घोताना उदृरभां प्रवेश उरावे छे. हे गौतम! शखातीत, शस्त्रपरिस्याभित ( भावत् ) =
SR No.009315
Book TitleBhagwati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages880
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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