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________________ - २४८ - भगवतीमत्रे 'तइए समए सिथ आहारए सिय अणाहारए' तृतीये समये स्यात् कदाचित् आहारकः, स्यात् कदाचित् अनाहारको भवति, विन्तु 'चउत्थे समए नियमा आहारए' परभवं गच्छन जीचः चतुर्थे समये नियमात् नियमतः अवश्यमेव आहारको भवत्येव ।' तत्र- 'पढमे समए सिय आहारए सिय अणाहारए' इति । यदा जीवः कालधर्म प्राप्य, अत्र सप्त श्रेणयो भवन्ति, तथाहि ऋज्वायता १, एकतो वका २, द्विधातो वक्रा३, एकतः खा ४, द्विधातः खा ५, चक्रवाला ६, अर्धचक्रवाला ७ । अत्राद्यानां तिसृणामेव प्रकरणम् । तेन ऋजुगत्या ऋज्वायतया श्रेण्या उत्पादस्थानं गच्छन् सिय आहारए, मिय अणाहारए' इसी तरह परभव में जाता हुआ जीव द्वितीय समय में कदाचित् आहारक होता है और कदाचित अनाहारक होता है। इसी तरह से 'तइए समए सिय आहारए सिय अणाहारए' तृतीय समय में भी कदाचित् आहारक होता है और कदाचित् अनाहारक होता है किन्तु-'चउत्थे समए नियमा आहारए' परभव में जाता हुआ यह जीव चौथे समय में तो नियम से आहारकहो ही जाता है। 'प्रथम समय में कदाचित आहारक होता है और कदाचित् अनाहारक होता है- ऐसा जो कहा गया है- उसका भाव ऐसा है कि जब जीव कालधर्म को प्राप्त कर उत्पाद स्थान की ओर जाता है उस समय सात श्रेणियां होती हैं- १ ऋज्वायता, २ एकतोचका, ३ दिधातोवक्रा, ४ एकतः खा, ५ द्विधातः खा, ६ चक्रवाला और ७ अर्धचक्रवाला यहां पर आदि की तीन ही श्रेणियों का प्रकरण है इससे ऋजुगति से- ऋज्वायत श्रेणि सेપરભવમાં જતો જીવ બીજે સમયે પણ ક્યારેક આહારક હોય છે અને કયારેક અનાહારક હોય छे. २०४ प्रमाणे 'तइए समए सिग आहारए. सिय अणाहारए श्री समय पर ते या२४ माहार उप छ भने ४या२४ मना।२४ उय छ, परन्तु 'चउत्थे समए नियमा आहारए' ५२वभi rai ४१ व्याथै समये तो नियमथा ४ (मवश्य) આહારક થઈ જ જાય છે પરભવમાં જતા જીવને પ્રથમ સમયે ક્યારેક અહારક અને કયારેક અનાહારક” કહેવાનું કારણ નીચે પ્રમાણે છે જ્યારે જીવ કાળધર્મ પામીને ઉત્પાદ સ્થાનની તરફ ગમન કરે છે, ત્યારે સાત श्रेणिमा डाय छ- (१) *वायता, (२) रोहता।, (3) द्विधाता४।, (४) तामा, (५) द्विधात:मा, (6) 4G! मने (७) अभ्यासा. मही पदी श्रणियानुन પ્રકરણ હોવાથી, તેમનું સ્પષ્ટીકરણ કરવામાં આવે છે– જવાયતા શ્રેણિથી એટલે કે
SR No.009315
Book TitleBhagwati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages880
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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