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________________ पमेयचन्द्रिका टीका श.६ उ.९ सू.३ देवज्ञानाज्ञानस्वरूपनिरूपणम् लेश्यो देवः उपयुक्तेन आत्मना जानाति, पश्यति । अन्ते-गौतम आर'सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति, तदे भदन्त ! तदेवं भदन्त ! इति ॥३॥ इति श्री-जैनाचार्य-जैनधर्मदिवाकर-पूज्यश्रीघासीलालबतिविरचितायां श्रीभगवतीसूत्रस्य प्रमेयचन्द्रिकाख्यायां व्याख्यायां पष्ठशतकस्य नवमोद्देशकः समाप्तः ॥६-९॥ सम्यग्दृष्टिपना तथा उपयुक्तावस्था है । अन्त में प्रभु के कथन को स्वासः प्रमाणभूत मानते हुए गौतम प्रभु से कहते हैं कि भदन्त ! आपने जो यह सब कहा है वह सर्वथा सत्य ही है सर्वथा सत्य ही है ।।सू०३।। जैनाचार्य श्री घासीलालजी महाराजकृत 'भगवतीसूत्र' की प्रमेयचन्द्रिका व्याख्याके छठे शतकके नववा उद्देशक समाप्त ।।६-९॥ स्वत: प्रमाणभूत माना गौतम स्वामी भने ४ छ- 'सेवं भंते ! सेवं मंसे ! चि' 3 महन्त ! मापन या सर्वथा सत्य ४ छ सयासत्य छे.' ॥ ४॥ જૈનાચાર્ય શ્રી ઘાસીલાલજી મહારાજકૃત “ભગવતી સની પ્રમેયચંદ્રિકા વ્યાખ્યાના ૭૬ શતકના નવા ઉદ્દેશ સમાપ્ત દા
SR No.009315
Book TitleBhagwati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages880
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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