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________________ प्रमेयचन्द्रिका टोकाश. ६ उ. ८ सू. १ पृथिवीस्वरूपनिरूपणम् १११ रपि मध्ये सभवेाऽस्त्येवेति भानः । गौतमः पृच्छति - 'अस्थिभंते । चंदिम?' हे भदन्त ! अस्ति संभवति खलु सौधर्मेशानयोर्मध्ये चन्द्रमाः यावत् - तारारूपाः? यावत्करणात् सूर्यग्रहगणनक्षत्राणि स ग्राहचानि, भगवानाह - णो इट्टे सम' हे गौतम! नायमर्थः समर्थः ? सौधर्मेशानयोर्मध्येचन्द्रादयो न संभवन्ति । गौतमः पृच्छति-'अस्थिणंभते ! गामा इवा ?' हे भदन्त ! अस्ति संभवति खलु सौधर्मेशानयोर्मध्ये ग्रामा इति वा, यावत् - सन्निवेशा: इति वा ? भगवानाह - ' णो ण सम' हे गौतम । नायमर्थः समर्थः, सौधर्मेशानयोर्मध्ये ग्रामादयो न संभवन्ति ! गौतमः पृच्छति - 'अस्थिणमंते ! चंदाभा इवा०' हे भदन्त ! ईशान में संभव है ही - तथा सौधर्म और ईशान में उदधिप्रतिष्ठित होने के कारण चादर अष्काय, वनस्पतिका का तथा सर्वत्र सद्भाव होनेसे वायुकायका भी निषेध नहीं किया है । बादरपृथिवीकार्य और चादर काका जो निषेध किया है वह इनका यहां पर स्वस्थान अर्थात् उत्पत्ति स्थान नहीं हैं - इसलिये किया है । अब गौतम पूछते हैं कि 'अस्थि णं संतें ! चंदिस' हे भदन्त । सौधर्म और ईशान में चन्द्रमा यावत् तारारूप हैं क्या ? यहां यावत् शब्द से सूर्य, ग्रहगण और नक्षत्र इनका ग्रहण किया गया है । इसके उत्तर में प्रभु उनसे कहते है कि- 'णो हट्टे समट्टे' हे भदन्त ! यह अर्थ समर्थ नहीं है अर्थात् सौधर्म और ईशान में चन्द्रमा आदि नहीं हैं । अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं 'अस्थि णं भंते ! गामाहवा' हे भदन्त ! सौधर्म और ईशान में ग्राम यावत् सनिवेश हैं क्या ? इसके उत्तर में प्रभु उनसे कहते हैं कि - णो णट्टे समट्टे' हे गौतम । यह अर्थ समर्थ नहीं है । अर्थात् सौधर्म और ईशान में ग्रामादिक नहीं है । अब गौतम प्रभुले સૌધર્મ અને ઇશાનમા ઉદધિપ્રતિષ્ઠિત હાવાને કારણે ખાદર અકાય, અને વનસ્પતિકાયના નિષેધ કર્યાં નથી, અને વાયુકાયના પણ નિષેધ કર્યાં નથી કારણ કે વાયુકાયના તે સત્ર સદ્ભાવ હાય છે ખાદર પૃથ્વીકાય અને બાદર અગ્નિકાયના ત્યાં નિષેધ કરવાનુ કારણ એ છે કે ત્યાં તેમનુ સ્વસ્થાન–ઉત્પત્તિસ્થાન નથી गौतम स्वाभीना प्रश्न 'अस्थिण भंते ! चंदिम' डे लहन्त । सौधर्म म ઇશાન કલ્પમાં શુ ચન્દ્રમા, સૂર્ય, ગ્રહગણુ, નક્ષત્રા અને તારાના સદ્ભાવ છે. उत्तर- 'णो इणट्टे समट्ठे' हे गौतम! त्या यन्द्रमा महिना सद्दभाव नथी. प्रश्न- ' अस्थिणं भते गामाड वा ?' डे लहन्त । सौधर्म भने ईशान કલ્પમાં ગામથી સન્નિવેશ પન્તના સ્થાને સભવિત છે ખરાં ? उत्तर- 'णो इणट्टे समट्ठे' हे गौतम! त्या ग्राम, नगर, आहि संभवी शतु नथी 'जान' पहथी પદ્માના સગ્રહ કરાયે છે તે પદો આ સૂત્રમાં જ આગળ આવી ગ્યા છે.
SR No.009315
Book TitleBhagwati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages880
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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