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________________ ११० भगतीस स्तनितशब्दमपि देवोऽपि प्रकरोति, असुरोऽपि प्रकरोति, न नागः प्रकरोति गौतमः पृच्छति - 'अस्थि णं भंते ! वायरे पुढवीकाए, वायरे अगणिकाए ? ' भदन्त ! अस्ति भवति खलु सौधर्मेशानयोर्मध्ये वादरः पृथिवीकाय ? बादरः अग्निकायः ? भगवानाह - ' णो इणडे समहे, गण्णत्थ विग्गहगति समावन्नणं' हे गौतम! नायमर्थः समर्थः सौधर्मेशानयोर्मध्ये बादरः पृथिवीकायः, वादरः अग्निकायश्च न संभवतः, तथाचेह बादरपृथिवी तेजसोः स्वस्थानत्वाभावेन निषेधः कृतः, किन्तु सौधर्मेशानयोरुदधि प्रतिष्ठितत्वेन तत्र वादराकाय - वनस्पतिकाययोः संभवेन, वायोश्च सर्वत्र भावेन, एतत्त्रयाणामपि निषेधो न कृतः, किन्तु इह 'न' शब्देन योऽयं बादरपृथिवीकायाग्निकाययोर्निषेधः कृतो वर्तते सं विग्रहगतिसमापन्न केन अन्यत्र बोध्यः, विग्रहगत्यापनबाद पृथिवीकायामिकाययोस्तु सौधर्मेशानयो शब्द के विषय में भी जानना चाहिये - अर्थात् सौधर्म और ईशान में मेघोंके स्तनित शब्दको भी देव करता है असुर भी करता है, पर नागकुमार नहीं करता है । अब गौतम पूछते हैं 'अस्थि णं भंते! बारे पुढचीकाए, बायरे अगणिकाए' कि हें भदन्त ! सौधर्म और ईशान में बादर पृथ्वीकाय और बादर अग्निकाय हैं क्या ? उत्तर में प्रभु कहते हैं 'णो इण े समट्टे' हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है अर्थात् सौधर्म और ईशान में बादर पृथ्वीकाय और बादर अनिकाय नहीं हैं - परन्तु 'णण्णत्थ विग्गह गइसमाचन्नएणं' यह जो निषेध किया गया है वह विग्रहगति समापन्नक चादर पृथ्वीकाय और बादर अग्नि कायको छोडकर ही किया गया है । कारण विग्रहगतिसमापनक यादर पृथिवीकाय और बादर अग्निकाय इनका तो सौधर्म और गौतभ स्वाभीने! प्रश्न-'अत्थिणं भंते! वायरे पुढंवीकाए, वायरे अगणिकाए હું બદન્ત! સૌધમ અને દેવલે કમાં શુ ખાર પૃથ્વીકાય અને માદર અગ્નિકાય હાય છે ખરાં? भहावीर प्रसुनो उत्तर- 'णो इणट्टे समट्टे' हे गौतम! सौधर्म भने ईशान इस्योभा जाहर पृथ्वीाय भने बाहर भनिय नथी, परंतु 'गण्णत्थ विग्गहगह समावन्नपूर्ण' मा ने निषेध उरवामां भाव्यो छे ते विग्रहपतिसमापन्न महर પૃથ્વીકાય અને માદર અગ્નિકાયને ઘેાડીને જ કરાયેા છે કારણ કે તે અન્ને કલ્પેામાં વિગ્રહગતિસમાપન્નક ખાદર પૃથ્વીકાય અને માદર અગ્નિકાય તે સંભવી શકે છે તથા
SR No.009315
Book TitleBhagwati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages880
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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