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________________ २०७ अॅगवती सूत्रे तादिः ज्ञानावरणं कर्म बध्नाति, किन्तु ' णोसंजय - णोअसंजय गोसंजयासंजर ण बंध' नोसंयत-नोअसंयत-नोसंयतासंयतो निषिद्धसंयमादिभावः सिद्धो न वध्नाति हेत्वभावात् । ' एवं आउगवज्जाओ सत्तचि ' एवम् अनेन प्रकारेण आयुष्कवः ज्ञानावरणव देव ' सप्तापि कर्मप्रकृतयो विज्ञेयाः तथा च आयुष्कवर्जितानि दर्शनावरणीयादि कर्माण्यपि संयतः कदाचिद बध्नाति कदाचिन बध्नाति । असंयतो वध्नाति । संयतासंयतोऽपि वध्नाति, किन्तु ' अउगे देहिल्ला तिष्णि भयणाए ' आयुष्कं कर्म अधस्तनाः आद्यास्त्रयः संयतः, असंयतः, संयतासंयतश्च का बंध करता है ( संजयासंजए वि बंधइ ) तथा जो संयतासंयत- देश - विरत - पंचमगुणस्थानवर्ती जीव है वह भी ज्ञानावरणीय कर्म का बंध . करता है । तथा-जो जीव ( णो संजय - णो असंजय ) इत्यादि है अर्थात् जिसके संयमादिभाव निषिद्ध हैं, ऐसे सिद्धजीच ज्ञानावरणीय कर्म का बंध-बंध के कारण का अभाव हो जाने से नहीं करते हैं । ( एवं आउ गवज्जाओ सत्त वि) इसी तरह से संयतद्वार में जीव-संयत, असंयत और संयतासंयत जीवों में से संगतजीव आयुकर्म को छोड़कर दर्शनावरणीय आदि कर्मप्रकृतियों को कदाचित् बांधता भी है और कदाचित् नहीं भी बांधता है इस विषय में समस्नकथन संयतजीव के ज्ञानावर णीय कर्म के बांधने न बांधने के जैसा समझना चाहिये । ( असंयत ) जीव आयुकर्म को छोड़कर शेष दर्शनावरणीय आदि कर्मप्रकृतियों को afता है इसी तरह से जो पंचमगुणस्थानवर्ती जीव है उसे भी जानना चाहिये । किन्तु (आउगे हेडिल्ला तिष्णि भगणार) अधस्तन तीन जो ये संयत, असंयत और संयतासंयत जीव हैं वे आयुकर्म का बंध भजना એટલે કે દેશિવરતિવાળા પાંથમાં ગુણસ્થાને રહેલે જી૧-પણ જ્ઞાનાવરણીય उर्थना अंध अरे छे. तथा ( णो संजय, णो असंजय, णो संजयासंजए न बंधइ ). ના સહયત, ના અસયત અને ના સયતાસયત જીવેા જ્ઞાનાવરણીય કા બંધ કરતા નથી—એટલે કે જેમના સચમાઢિ ભાવ નિષિદ્ધ છે એવાં સિદ્ધ જીવા જ્ઞાનાવરણીય કÀા બંધ કરતા નથી કારણ કે ત્યાં ક`બંધનાં કારણુનાજ मलाव होय छे. (एवं आउगवज ओ सत्त वि) येन प्रभाही सौंयत, असंयत अने સયતાસ'યત જીવે। કમ પ્રકૃતિએના બંધ કયારેક ખાંધે છે અને કયારેક માંધતા નથી, અસયત જીવ આચુકમ' સિવાયની સાતે કમ પ્રકૃતિના મધ ખાંધે છે. એ જ પ્રમાણે પાંચમાં ગુણસ્થાને રહેલા જીવના વિષયમાં પણ સમજવું. 'तु ( आउगे हेट्ठिला तिष्णि भयणाए ) पडेसा त्रयु अारना वो भेटले કે સયત, અસ'ચત અને સયતાસયત જીવો આયુકમના અધ વિકલ્પે કરે
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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