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________________ प्र ० श० ६ उ० ३ सू० ४ कर्मस्थिति निरूपणम् ई वध्नाति ? अथवा ' णोसंजय - णोअसंजय - गोसंजया संजए बंधइ ? ' नो संयत-नोअसंयत नोसंयतासंयतो बध्नाति ? भगवानाह - गोयमा ! संजय सिय बंध, सिय णो बंध ' हे गौतम! संयतः आद्यसंयमचतुष्टयवृचिज्ञनावरणं स्यात् कदाचिद् बध्नाति यथाख्यातसंयतस्तु उपशान्त मोहादिः स्यात् कदाचित् नो बध्नाति 'असंजए बंधइ ' असंयतो मिथ्यादृष्ट्यादिः ज्ञानावरणं कर्म वध्नाति, ' संजयासंगए वि बंधइ ' संयतासंयतोऽपि देशविर - कर्मका बंधकरता है ? (णो संजय - णोअसंजय णोसंजपासंजए बंध) जो जीव न संयत है, न असंत है और न संयतासंयत है वह ज्ञानावरणीय कर्मका वध करता है क्या ? इसका उत्तर देते हुए प्रभु गौतम से कहते हैं कि. (गोथमा) हे गौतम (संजए सिय बंध, सिय णो बंध) संपत जीव ज्ञानावरणीय कर्म का बंध करता भी है और नही भी करता है - इसका भाव यह है कि जो जीव सामायिक, छेदोपस्थापनीय, परिहारविशुद्ध और सूक्ष्मसपराय इन आदि के चार संयम में रहनेवाला है वह तो ज्ञानावरणीय कर्म का बंध करता है और जो यथाख्यात संयमवाला जीव है वह उपशान्त मोह आदि गुणस्थानों में रहनेवाला होने के कारण ज्ञानावरणीय कर्म का बंध नहीं करता है । इसी बात को लक्ष्य में लेकर ( संजए सिय बंध, सिय णो बंधइ ) ऐसा कहा गया है । (असंजए Eat ) असंयमी जो मिथ्यादृष्टि आदि जीव है-वह ज्ञानावरणीयं कर्म 11 यथवा-( णोसंजय-णोअसजय णोसंजयासंजए बंधइ १ ) ? लवनेो સયત છે, ના અસયત છે અને ના સયતાસયત છે, .તે શું જ્ઞાનાવરણીય કા બધ કરે છે ? उत्तर--" गोयमा ! " हे गौतम ! ( संजए सिथ बधइ, सिय णो बधइ ) સયત જીવ જ્ઞાનાવરણીય કના મધ કયારેક કરે છે અને કયારેક નથી કરતા. આ કથનનું તાત્પય નીચે પ્રમાણે છે જે જીવ સામાયિક, છેદેપસ્થાપ નીય, પરિહાર વિશુદ્ધિ અને સૂક્ષ્મ સાંપરાય આદિ ચાર સયમમાં રહેનાર હાય છે, તે જ્ઞાનાવરણીય કા ખધ કરે છે, પણ જે યથાખ્યાત સથમવાળા જીવ હોય છે તે ઉપરાન્ત મેહ આદિ ગુણસ્થાનામાં રહેનારા હાવાથી જ્ઞાના वरीय मना मध तो नथी. मे वातने अनुसक्षीने " संजय सिय q'us, feu of a'aş" sily. “ अजसए बधइ " असंथभी मिथ्यादृष्टि माहि कब ज्ञानावरणीय धरे छे, ( संजयास जए वि बंधइ ) तथा संयतासंयत कुष इन
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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